प्रश्न 9.
आर्य समाज के योगदान का वर्णन कीजिए।
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Answer:
दयानन्द सरस्वती ने 12 अप्रैल, 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्य समाज जसे जागरूक मंच से उन्होंने देश में फैली कुरीतियों और धर्म के नाम पर पाखंडों को जड़ से उखाड़ फेंकने के साथ-साथ गुलामी की बेड़ियों से जकड़ी मातृभूमि को विदेशियों से मुक्त कराने का आह्वान किया। आर्य समाज वैदिक धर्म पर आधारित वह संगठन है, जो धर्म, अधर्म की व्याख्या तर्क की तुला पर तौलकर करता है। वेदों में स्पष्ट लिखा है कि ईश्वर की कोई प्रतिमा नहीं है, वह अंतर्यामी है। इसलिए परमात्मा को किसी स्थान विशेष में सीमित करके नहीं रखा जा सकता। वह अजर अमर और अभय इस समूचे जगत की उत्पत्ति करने वाला है। उसी सर्वशक्ितमान की उपासना यज्ञादि कर्मों द्वारा की जाती है। यह उपासना जहां घरों में की जाती है, वहीं अवसर विशेष पर या रोाना आर्यसमाज मंदिरों में सामूहिक यज्ञों से सम्पन्न होती है। इस प्रकार मूर्ति पूजा के बजाए परमपिता परमेश्वर की सजीव मूर्तियों यानि मानवमात्र के कल्याण की कामना आर्य समाज द्वारा की जाती है। आर्य समाज की प्रमुख विशेषता यह है कि वह छुआछूत का घोर विरोधी है, इसलिए इसके यज्ञ-सत्संग में प्रत्येक वर्ग या जाति का व्यक्ित शामिल हो सकता है। आर्य समाज ईश्वर रूप में किसी अवतार को धर्म विरुद्ध मानता है। क्योंकि वेदों में ईश्वर को अजन्मा बताया गया है। धार्मिक आग्रहों को लेकर आर्य समाज सत्य के ग्रहण करने और असत्य को त्यागने की वकालत करता है। यदि कहीं कुछ संशय है, तो उसके निपटार का साधन खुला शास्त्रार्थ है। अंतराातीय विवाहों को लेकर आर्य समाज की विशिष्ट पहचान से आज सब वाकिफ हैं। आर्य समाज में जाति बंधन से मुक्त विवाह को आज कानूनी रूप मिला हुआ है जिसके लिए आर्य समाज का विवाह प्रमाण पत्र बालिगों के लिए संजीवनी सिद्ध हो रहा है। स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने वाले आर्य समाज ने विधवा विवाह पर सरकार को कानून बनाने पर मजबूर कर दिया।