प्रश्न . आपातकाल में सरकार के द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग किया गया था, इस
कथन के पक्ष में तर्क दें। (6)
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भारतीय संविधान में हुए कुल संशोधनों का यदि औसत निकाला जाए तो यह लगभग दो संशोधन प्रति वर्ष होता है. कानून के जानकारों के अनुसार इन संशोधनों ने संविधान को समय के साथ मजबूत ही किया है. लेकिन इस सफ़र में एक दौर ऐसा भी आया था जब संविधान पूरी तरह से निजी महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया था. यह दौर था इंदिरा गांधी द्वारा लागू किये गए आपातकाल का. इस दौरान संविधान में इस हद तक बदलाव कर दिए गए थे कि इसे अंग्रेजी में ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ की जगह ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा’ कहा जाने लगा था. इस दौर में संविधान में क्या परिवर्तन हुए, इन परिवर्तनों के क्या परिणाम हुए और कैसे संविधान को उसके मूल रूप में वापस लाया गया? इन सवालों के जवाब जानने की शुरुआत उन परिस्थितियों से करते हैं जिनके कारण संविधान से खिलवाड़ का दौर शुरू हुआ.
19 मार्च 1975 को इंदिरा गांधी पहली ऐसी भारतीय प्रधानमंत्री बनीं जिसे न्यायालय में गवाही देने आना पड़ा हो. यह मामला उनके खिलाफ दर्ज की गई चुनाव याचिका की सुनवाई का था. मार्च 1975 का यही वह समय भी था जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में दिल्ली की सड़कों पर लगभग साढ़े सात लाख लोगों की भीड़ इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगा रही थी. आजादी के बाद यह पहला मौका था जब किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ इतनी बड़ी रैली निकाली गई थी. ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ और ‘जनता का दिल बोल रहा है, इंदिरा का आसन डोल रहा है’ जैसे नारों से सारा देश गूंज उठा था.
आपातकाल को समय की जरूरत बताते हुए इंदिरा गांधी ने उस दौर में लगातार कई संविधान संशोधन किये. 40वें और 41वें संशोधन के जरिये संविधान के कई प्रावधानों को बदलने के बाद 42वां संशोधन पास किया गया
इसके कुछ समय बाद ही 12 जून 1975 का वह ऐतिहासिक दिन भी आया जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 15 नंबर कमरे में हुए एक फैसले ने इंदिरा गांधी के चुनाव को गलत बताते हुए उसे रद्द कर दिया. इसी महीने 25-26 जून की दरम्यानी रात देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया. इसके बाद शुरू हुआ संविधान में ऐसे संशोधनों का दौर जिन्होंने भारतीय गणतंत्र की आत्मा को ही बदलकर रख दिया.