Hindi, asked by renuverma04445, 6 months ago

प्रश्न-
अथवा
कबीर हरि रस यौँ पिया, बाकी रही न थाकि।
पाका कलंस कुम्हार का, बहुरि न चढ़ई चाकि।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
पद्यांश के कवि एवं पाठ का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कुम्हार के घड़े के सम्बन्ध में कबीर के क्या विचार हैं?
(iv) कबीर के मन की सारी तृष्णा क्यों समाप्त हो गयी है?
(v) प्रस्तुत पद्य पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?​

Answers

Answered by payalbhagwat8
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Answer:

i)कबीर कहते हैं - हरि का प्रेम-रस ऐसा छककर पी लिया कि कोई और रस पीना बाकी नहीं रहा ।कुम्हार का बनाया जो घड़ा पक गया, वह दोबारा उसके चाक पर नहीं चढ़ता । [मतलब यह कि सिद्ध हो जाने पर साधक पार कर जाता है जन्म और मरण के चक्र को]

Answered by rishabhverma8887
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Explanation:

कुम्हार के घड़े के संबंध में कबीर का क्या विचार है

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