) प्रश्न:
१. बेबी शांता को पुरस्कार कब व किसने दिया?
२. बेबी शांता को पुरस्कार क्यों दिया गया?
३. बेबी शांता को कौन-सा पुरस्कार दिया गया?
Answers
Explanation:
एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से बातें कर रहे थे। तब द्वार पर एक ब्राह्मण आया और उसने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में शासन की ओर से मदद प्रदान करें। राजा को यह सुनाई नहीं दिया और वे पुत्री के साथ बातचीत करते रहे।
द्वार पर आए नागरिक की याचना न सुनने से ब्राह्मण को दुख हुआ और वे राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चले गए। वे इंद्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने पर्याप्त वर्षा नहीं की। अंग देश में नाम मात्र की वर्षा हुई। इससे खेतों में खड़ी फसल मुर्झाने लगी।
इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद शृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि वे इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें। ऋषि ने यज्ञ किया और खेत-खलिहान पानी से भर गए। इसके बाद शृंग ऋषि का विवाह शांता से हो गया और वे सुखपूर्वक रहने लगे।
कश्यप ऋषि के पौत्र थे शृंग ऋषि
Rishi Shringपौराणिक कथाओं के अनुसार ऋषि शृंग विभण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभण्डक ने इतना कठोर तप किया कि देवतागण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशी को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋषि शृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋषि शृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था अतः उनका यह नाम पड़ा।
ऋषि श्रृंग के यज्ञ के फलस्वरुप ही राम ने लिया था जन्म
Rishi Shring Ashram
कालांतर में ऋषि शृंग ने ही दशरथ की पुत्र कामना के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाये थे वह अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में था और वहां आज भी उनका आश्रम है। वहीं पर उनकी और उनकी पत्नी की समाधियां भी हैं।
हिमाचल में भी है मंदिर
Rishi Shringहिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में शृंग ऋषि का मंदिर भी है। कुल्लू शहर से इसकी दूरी करीब 50 किमी है। इस मंदिर में शृंग ऋषि के साथ देवी शांता की प्रतिमा विराजमान है। यहां दोनों की पूजा होती है और दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
अब तक क्यों छुपी रही शांता की कहानी
Rishi Shring Ashramराम की बहन शांता के बारे में अनभिज्ञता का असली कारण तुलसी दास द्वारा लिखी गई रामचरित मानस है, जिसे कथावाचक लोगों को सुनाते रहते हैं। लोग इसी को राम का इतिहास समझ लेते हैं। लोग महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायाण इसलिए नहीं पढ़ते क्योंकि वह संस्कृत में है। जबकि वाल्मीकि रामायण अधिक प्रामाणिक इतिहास माना जाना चाहिए क्योंकि वाल्मीकि राम के समकालीन थे। उन्हीं के आश्रम में ही राम के पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था।
राम के बारे में जो भी जानकारी उनको मिलती थी वह रामायण में लिख लेते थे। रामायण इसलिए भी प्रामाणिक है कि वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड के सर्ग 94 श्लोक 1 से 32 के अनुसार राम के दौनों पुत्र लव और कुश ने राम के दरबार में जाकर सबके सामने रामायण सुनाई थी , जिसे राम सहित दरबार में मौजूद सभी लोगों ने सुना था।
रामायण में भी हैं शांता के प्रमाण
राम की बहन शांता के बारे में जानने के लिए हमें वाल्मीकि रामायण के बालकांड को पढ़ना चाहिए। हम आपके लिए यहां उन श्लोकों को प्रस्तुत कर रहे हैं जिनमें शांता का उल्लेख है। इन्हें ध्यान से पढ़ें, इनका हिंदी अर्थ भी साथ में दिया गया है।
इक्ष्वाकूणाम् कुले जातो भविष्यति सुधार्मिकः।
नाम्ना दशरथो राजा श्रीमान् सत्य प्रतिश्रवः।। काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 2
अर्थ - ऋषि सनत कुमार कहते हैं कि इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न दशरथ नाम के धार्मिक और वचन के पक्के राजा थे।
अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति।
कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति।। काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 3
अर्थ - उनकी शांता नामकी पुत्री पैदा हुई जिसे उन्होंने अपने मित्र अंग देश के राजा रोमपाद को गोद दे दिया, और अपने मंत्री सुमंत के कहने पर उसकी शादी श्रृंगी ऋषि से तय कर दी थी।
अनपत्योऽस्मि धर्मात्मन् शांता भर्ता मम क्रतुम्।
आहरेत त्वया आज्ञप्तः संतानार्थम् कुलस्य च।। काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 5
अर्थ - तब राजा ने अंग के राजा से कहा कि मैं पुत्रहीन हूँ, आप शांता और उसके पति श्रृंग ऋषि को बुलवाइए मैं उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए वैदिक अनुष्ठान कराना चाहता हूँ।
श्रुत्वा राज्ञोऽथ तत् वाक्यम् मनसा स विचिंत्य च।
प्रदास्यते पुत्रवन्तम् शांता भर्तारम् आत्मवान्।। काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 6
अर्थ -दशरथ की यह बात सुन कर अंग के राजा रोमपाद ने हृदय से इसबात को स्वीकार किया, और किसी दूत से श्रृंग ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए बुलाया।
आनाय्य च महीपाल ऋश्यशृङ्गं सुसत्कृतम्।
प्रयच्छ कन्यां शान्तां वै विधिना सुसमाहित।। काण्ड 1सर्ग 9 श्लोक 12
अर्थ -श्रृंग ऋषि के आने पर राजा ने उनका यथायोग्य सत्कार किया और पुत्री शांता से कुशलक्षेम पूछ कर रीति के अनुसार सम्मान किया।
अन्त:पुरं प्रविश्यास्मै कन्यां दत्त्वा यथाविधि।
शान्तां शान्तेन मनसा राजा हर्षमवाप स:।। काण्ड 1 सर्ग10 श्लोक 31
अर्थ -(यज्ञ समाप्ति के बाद) राजा ने शांता को अंतः पुर में बुलाया और रीति के अनुसार उपहार दिए, जिससे शांता का मन हर्षित हो गया।