प्रश्ना क उत्तर एक वाक्य में दीजिए :
6
भरत के चरित्र को तुलसीदास बाहर से नहीं, भीतर से संवारते हैं, उसे बड़ी सहजता और स्वाभाविकता से उभारते
आत्मा की हार
वो अभ्यास द्वारा सुगम
।
को प्राणों से भी प्रिय है। जिसे राम प्रिय हों वह महान बन जाता है, किन्तु जो राम को प्रिय हो उसकी महानता का कहना
ही क्या? भरत में दोनों गुण घुले-मिले हैं। राम तो उन्हें प्रेम करते ही हैं, साथ ही साथ भरत भी राम से प्रेम करते हैं।
जो राम को प्रिय हो या जिसे राम प्रिय हो, उस पर कोई आक्षेप लगाना या उसके बारे में कुछ अनुचित बोलना राम का
अपमान होगा। इससे सत्कर्म तो नष्ट होंगे ही, पाप भी बढ़ेगा। धर्म का मूलाधार यह है कि जब भक्त प्रभुमय हो जाता
है तब उसके संपूर्ण चरित्र में प्रभुता प्रकाशित हो उठती है।
1) लेखक का हृदय
2) मनुष्य का सब
(3) संस्कृति का
(4) इस परि
तर:(1) भा
की अवहेल
Answers
Answered by
0
Answer:
SANSKRITI Ka hope it's correct answer
Similar questions