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निम्नलिखित श्लोक का भावार्थ हिन्दी में लिखें -
श्रोत्रं श्रुतनैव न कुण्डलेन, दानेन पाणिर्न तु कड्कणेन ।
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन ।।
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श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन , दानेन पाणिर्न तु कंकणेन , विभाति कायः करुणापराणां , परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
अर्थात् :कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा ...
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