प्रश्न किया है मेरे मन के मीत ने
मेरा और तुम्हारा क्या सम्बन्ध है
वैसे तो सम्बन्ध कहा जाता नहीं
व्यक्त अगर हो जाए तो नाता नहीं
किन्तु सुनो लोचन को ढाँप दुकूल से
जो सम्बन्ध सुरभि का होता फूल से
मेरा और तुम्हारा वो सम्बन्ध है
मेरा जन्म दिवस ही जग का जन्म है
मेरे अन्त दिवस पर दुनिया खत्म है
आज बताता हूँ तुमको ईमान से
जो सम्बन्ध कला का है इंसान से
मेरा और तुम्हारा वो सम्बन्ध है
मैं न किसी की राजनीत का दाँव हूँ
देदो जिसको दान न ऐसा गाँव हूँ
झूठ कहूँगा तो कहना किस काम का
जो सम्बन्ध प्रगति और विराम का
मेरा और तुम्हारा वो सम्बन्ध है
करता हूँ मैं प्यार सुनाता गीत हूँ
जीवन मेरा नाम सृजन का मीत हूँ
और निकट आ जाओ सुनो न दूर से
जो सम्बन्ध स्वयंवर का सिन्दूर से
मेरा और तुम्हारा वो सम्बन्ध है
मैं रंगीन उमंगों का समुदाय हूँ
सतरंगी गीतों का एक निकाय हूँ
और कहूँ क्या तुम हो रहे उदास से
जो सम्बन्ध समर्पण का विश्वास से
मेरा और तुम्हारा वो सम्बन्ध है
प्रश्न किया मेरे मन के मीत ने
मेरा और तुम्हारा क्या सम्बन्ध है
This is poem "prashna kiya he mere man ke mit ne"....Ple tell the saransh
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