प्रश्न ३) नीचे दिए गए शब्दो को स्वर और व्यंजन के क्रम के अनुसार लिखिए
उड़ान, बात
बात , अजीब, तसवीर , डाक ,पक्षी , सहायता, एक
Answers
Answer:
स्वर में ध्वनियों का वर्ण है जिसके उच्चारण से मुख विवर सदा कम या अधिक खुलता है , स्वर के उच्चारण के समय बाहर निकलती हुई श्वास वायु मुख विवर से कहीं भी रुके बिना बाहर निकल जाती है .
इसकी विशेषताएं क्या क्या है अब उस पर ध्यान दीजिए –
स्वर की विशेषता ( Swar ki Visheshta )
स्वर तंत्रियों में अधिक कंपन होता है।
उच्चारण में मुख विवर थोड़ा-बहुत अवश्य खुलता है।
जिह्वा और ओष्ट परस्पर स्पर्श नहीं करते।
बिना व्यंजनों के स्वर का उच्चारण कर सकते हैं।
स्वराघात की क्षमता केवल स्वरूप को होती है
व्यंजन
व्यंजनों के उच्चारण में स्वर यंत्र से बाहर निकलती श्वास वायु मुख – नासिका के संधि स्थूल या मुख – विवर में कहीं न कहीं अवरुद्ध होकर मुख या नासिका से निकलती है।
इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
व्यंजनों की विशेषता ( Vyanjan ki Visheshta )
व्यंजन को ‘ स्पर्श ध्वनि ‘ भी कहते हैं।
उच्चारण में कहीं ना कहीं मुख विवर अवरुद्ध होती है।
व्यंजनों का उच्चारण देर तक नहीं किया जा सकता।
व्यंजन स्वराघात नहीं वहन कर सकते।
स्वरों का वर्गीकरण
अब हम स्वरों के वर्गीकरण के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
१ मात्रा के आधार पर
मात्रा के आधार पर स्वरों को तीन वर्गों में बांटा जाता है – ह्रस्व , दीर्घ , प्लुत।
ह्रस्व में एक मात्रा का समय लगता है – ‘ अ ‘ दीर्घ के उच्चारण में से अधिक मात्रा का समय लगता है।
प्लुत में अधिक मात्रा का समय लगता है – ‘ अ ‘
२ मुख कुहर
इस आधार पर स्वरों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है – विवृत , इष्यत विवृत , संवृत , इष्यत संवृत ,
विवृत – उच्चारण में मुख अधिक खुलता है – ‘ आ ‘
इष्यत विवृत – उच्चारण में कम खुलता है – ‘ ए ‘
संवृत – उच्चारण में मुख्य संकीर्ण रहता है – ‘ ई ‘
इष्यत संवृत – मुंह कम खुलता है – ‘ ए ‘
३ जिह्वा की स्थिति के आधार पर
जब स्वरों का उच्चारण किया जाता है तो जीवा अग्र , मध्य , पश्च की स्थिति में होती है।
अग्र स्वर – इ ,ई , ए।
मध्य स्वर – य
पश्च स्वर – आ , अ , उ।
४ ओष्ठ के आधार पर –
ओष्ठ के आधार पर भी स्वरों का वर्गीकरण किया जाता है। ओष्ठ को दो वर्ग में विभजि किया गया है अवृत्तमुखी , वृतमुखी
अवृत्तमुखी – जिन स्वरों के उच्चारण में ओठ वृतमुखी या गोलाकार नहीं होता है – अ , आ , इ ,ई , ए ,ऐ।
वृतमुखी – जिन स्वरों के उच्चारण में ओठ वृतमुखी या गोलाकार होते है -उ ,ऊ ,ओ ,औ।
५ अनुनासिकता के आधार पर
स्वरों के उच्चारण में जब मुख विवर से पूरी तरह से स्वांस निकल जाए तब अनुनासिकता कहलाते हैं।अनुनासिकता दो प्रकार के है –
निरानुसाकता – -जिन स्वरों के उच्चारण में हवा केवल मुँह से निकलती है (अ , आ , इ )
अनुनासिकता — जिन स्वरों के उच्चारण में हवा नाक से भी निकलता है (अं , आं , इं )
उच्चारण में मुख तथा नासिका से वायु बाहर निकलती है तभी अनुनासिकता कहलाती है।
Swar aur vyanjan in hindi
Swar aur vyanjan in hindi
व्यंजन के आधार पर वर्गीकरण
हिंदी व्याकरण में व्यंजनों की संख्या ३३ मानी गयी है। व्यंजनों का अध्ययन ३ बहगों में किया जाता है स्पर्श व्यंजन , अन्तः स्थ व्यंजन , उष्म/संघर्षी।
स्पर्श व्यंजन –
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा फेफड़ों से निकलते हुए मुंह के किसी स्थान विशेष कंठ , तालु , मूर्धा , दात या होंठ का स्पर्श करते हुए निकले।
घोषत्व के आधार पर – घोष का अर्थ है स्वर तंत्रियों में ध्वनि का कंपन
अघोष – जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन हो।
सघोष / घोष – जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन हो।
प्राणतत्व के आधार पर – यहां प्राण का अर्थ है हवा।
अल्पप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले।क , च , ट ,ग ,ज द आदि
महाप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले। ख , छ ,ठ ,थ ,फ ,घ ,झ आदि
अन्तः स्थ व्यंजन
जिन वर्णों का उच्चारण पारंपरिक वर्णमाला के बीच अर्थात स्वरों और व्यंजनों के बीच स्थित हो।
उष्म/संघर्षी
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु मुख से किसी स्थान विशेष पर घर्षण कर निकले वहां ऊष्मा , गर्मी पैदा करें , वह संघर्षी व्यंजन कहलाता है। श , सा।
अयोग्यवाहक – अनुस्वार , विसर्ग परंपरा अनुसार अनुस्वार और विसर्ग स्वरों के साथ रखा जाता है किंतु यह स्वर ध्वनियां नहीं है क्योंकि इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरह स्वर की सहायता से होता है। यह व्यंजन भी नहीं है क्योंकि इनकी गणना स्वरों के साथ होती है , और उन्हीं की तरह लिखने में इनके लिए मात्राओं का प्रयोग किया जाता है।
Explanation:
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