प्रश्न . १ . निम्नलिखित गद्यांश को पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए । सत्य की आराधाना भक्ति है और भक्ति ‘सिर हथेली पर लेकर चलने का सौदा ’ है, अथवा वह ‘हरि का मार्ग है, जिसमें कायरता की गुंजाइश नहीं है, जिसमें हार नाम की कोई चीज है ही नहीं । वह तो ‘मरकर जीने का मंत्र’ है। सब बालक,बड़े, स्त्री-पुरुष चलते-फिरते, उठते-बैठते , खाते-पीते, खेलते-कूद्ते ---- सारे काम करते हुए यह रटन लगाए रहें और ऐसा करते-करते निर्दोष निद्रा लिया करें तो कितना अच्छा हो। यह सत्य रूपी परमेश्वर मेरे लिए रत्न चितामणि सिद्ध हुआ है।हम सभी के लिए वैसा ही सिद्ध हो। सत्य का, अहिंसा का मार्ग जितना सीधा है उतना ही तंग भी, खाँडे़ की धार पर चलने के समान है। नट जिस डोर पर सावधानी से नजर रखकर चल सकता है, सत्य और अहिसा की डोर उससे भी पतली है। जरा चूके कि नीचे गिरे। पल-पल साधना से ही उसके दर्शन होते हैं। लेकिन सत्य के संपूर्ण दर्शन तो इस देह से असंभव है। उसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। क्षणभंगुर देह द्वारा शाश्वत धर्म का साक्षात्कार संभव नहीं होता। अतः अंत में श्रद्धा के उपयोग की आवश्यकता तो रह ही जाती है। इसी से अहिंसा जिज्ञासु के पल्ले पड़ी। (क) ‘मरकर जीने का मंत्र’ किसे कहा गया है?
1 point
सत्य को
कायरता को
आराधना या भक्ति को
(ख) सत्य और अहिंसा के मार्ग को किसके समान बताया गया है?
1 point
कायरता के समान
तलवार की धार में चलने के समान
डोर में चलने के समान
(ग)मानव की देह को कैसा बताया गया है?
1 point
क्षणभंगुर
पानी के बुलबुले के समान नहीं
पत्थर के समान कठोर
दूसरों को विज्ञान की उपयोगिता बताना
(घ)इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौन सा है?
1 point
मानव के विचार
सत्य और अहिंसा
मानव देह
यातायात
Answers
Answer:
मधुर वचन वह रसायन ह जी पारस का भाति लाह का साना बना देता है। मनुष्य का
बात ही क्या, पशु-पक्षी भी उसके वश में हों, उसके साथ मित्रवत् व्यवहार करने लगते
हैं। व्यक्ति का मधुर व्यवहार पाषाण-हृदयों को भी पिघला देता है। कहा भी गया है
"तुलसी मीठे बचन ते, जग अपनो करि लेत' ।
निस्सन्देह मीठे वचन औषधि की भाति श्रोता के मन की व्यथा, उसकी पीड़ा व वेदना को
हर लेते हैं। मीठे वचन सभी को प्रिय लगते हैं। कभी-कभी किसी मृदुभाषी के मधुर वचन
घोर निराशा में डूबे व्यक्ति को आशा की किरण दिखा उसे उबार लेते हैं, उसमें
जीवन-संचार कर देते हैं उसे सान्त्वना और सहयोग देकर यह आश्वासन देते हैं कि वह
व्यक्ति अकेला व असहाय नहीं, अपितु सारा समाज उसका अपना है, उसके सुख-दुख
का साथी है। किसी ने सच कहा है
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"मधुर वचन हैं औषधि, कटुक वचन हैं तीर।"
मधुर वचन श्रोता को ही नहीं, बोलने वाले को भी शांति और सुख देते है। बोलने वाले
के मन का अहंकार और दभ सहज ही विनष्ट हो जाता है। उसका मन स्वच्छ और
निर्मल बन जाता है। वह अपनी विनम्रता, शिष्टता एवं सदाचार से समाज में यश, प्रतिष्ठा
और मान-सम्मान को प्राप्त करता है। उसके कार्यों से ही नहीं, समाज को भी गौरव और
यश प्राप्त होता है और समाज का अभ्युत्थान होता है। इसके अभाव में समाज पारस्परिक
कलह, ईर्ष्या-द्वेष, वैमनस्य आदि का घर बन जाता है। जिस समाज में सौहार्द नहीं,
सहानुभूति नहीं, किसी दुखी मन के लिए सान्त्वना का भाव नहीं, वह समाज कैसा? वह
तो नरक है।मधुर वचन निराशा में डूबे व्यक्ति की सहायता कैसे करते हैं