प्रश्न-१ निम्नलिखित गद्यांष को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछ गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
संस्कृतियों के निर्माण में एक सीमा तक उपादान तो प्रायः सभी सुसंस्कृत और सभ्य देशों में एक सीमा तक
समान रहते है, किन्तु बाय उपादानों में अंतर अवश्य आता है। राष्ट्रीय या जातिय संस्कृति का सबसे बड़ा
योगदान यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परंपरा से संपृक्ट बनाती है। अपनी रीति-नीति की संपदा से
विच्छिन्न नहीं होने देती। आज के युग राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलन के अवसर आति सुलभ हो गए
है, संस्कृतियों का पारस्परिक संघर्ष भी शुरू हो गया है। कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहे है।
जिनके आतंक ने हमें स्वयं अपनी संस्कृति के प्रति संघयालु बना दिया है। हमारे आस्था डिगने लगी है। यह
हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल है।
(अपनी संस्कृति को छोड़ विदेशी संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को जो
ठेस पहुंचा है, यह किसी राष्ट्रप्रेमी जागरूक व्यक्ति से दिया नही है। भारतीय संस्कृति में वयाग और ग्रहण की
अद्भुत क्षमता रही है। अतः आज के वैज्ञानिक युग में हम किसी भी विदेशी संस्कृति के जीवन तत्वों को ग्रहण
करने में पीछे नही रहना चाहेगें, किंतु अपनी सांस्कृतिक नियि की अपेक्षा करके नही। महा परवलंबन राष्ट्र की
गरिमा के अनुरू. नही है। यह स्मरण रखना चाहिए कि सूयी की आलोंक प्रदायिनी किरणों से पोचों को चाहे
जितनी जीवन शक्ति मिले, किन्तु अपनी जमीन और अपनी जड़ो के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता।
अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही पर्याय है।
क) आधुनिक युग में संस्कृतियों पर परस्पर संघर्ष प्रारंभ होने का प्रमुख कारण बताईए।
ख) हम अपनी संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन क्या है?
ग) राष्ट्रीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन क्या है?
५). हम अपनी संस्कृतिक संपदा की उपेक्षा क्यों नहीं कर सकते?
इ) अज्ञान का प्रर्चाय क्या है?
च) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए
डीसलिए
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