प्रश्न. निम्नलिखित विषयों पर 80 से 100 शब्दों में निब
(1) प्रदूषणमुक्त त्योहार
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आज जिस ओर भी नजर दौड़ाएं चहुओर प्रदूषण का आलम ही नजर आता हैं. कुछ दशक पूर्व तक यह इतनी गंभीर समस्या नहीं थी, मगर औद्योगिक प्रगति के नाम पर हमारी हवा, जल तथा भूमि में अब पूरी तरह जहर घुल चूका हैं. प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन तथा तेजी से हो रही वनों की कटाई के चलते प्रदूषण एक भयंकर समस्या बनकर उभरा हैं.
दिवाली हमारा मुख्य पर्व हैं जिसे भारत भर में लोग हर्षोल्लास से मनाते हैं. इस अवसर पर बड़ी मात्रा में फटाखे जलाएं जाते हैं. कुछ दिन पूर्व से लेकर दीपावली के कई दिन बाद तक पटाखों की गूंज सुनाई पड़ती हैं. ये पटाखे रासायनिक पदार्थों से मिलकर बने होते है जो जलने पर जहरीली गैसों के उत्सर्जन के साथ ही जोर से आवाज करते हैं.
बड़े शहरों में दिवाली के दिनों में पटाखों का विस्फोट इतनी अधिक मात्रा में होता हैं कि कुछ भी स्पष्ट सुनना मुश्किल हो जाता हैं. गलियों में फटाखों के कागज तथा अपशिष्ट बिखरे पड़े रहते हैं. इस तरह प्रत्येक साल इस पर्व के बाद शहर में कई कूड़े के ढेर बन जाते हैं. निरंतर सुलगते रहने से ये हवा को प्रदूषित करते रहते हैं.
दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जहाँ पर्यावरण प्रदूषण एक भयावह समस्या के रूप में सामने आया हैं. दिवाली के उत्सव के दौरान यहाँ के आसमान में धुएँ के काले बादल तथा कृत्रिम कोहरे को स्पष्ट देखा जा सकता हैं. दिवाली या अन्य पर्वों पर पटाखे जलाने से उसमें से निकलने वाली हानिकारक गैस तथा हवा में घुले महीन कण स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं.
पटाखों से वातावरण में उत्पन्न रासायनिक जहर का सबसे अधिक दुष्प्रभाव श्वास, चर्म सम्बन्धी बीमारियों के रोगियों व बच्चों पर पड़ता हैं. कई दिनों तक ये रासायनिक कण हवा में घुले होने के कारण आँखों की रोशनी को भी बुरी तरह प्रभावित करते हैं.
इसके अतिरिक्त दिवाली के अवसर पर पटाखे जलाने से कई प्रकार की घटनाएं भी घटित हो जाती हैं देशभर में इससे बड़ा जान माल का नुकसान होता हैं. जिस तेजी से वायुमंडल में गैसों का संतुलन बिगड़ रहा हैं हमें अब प्रदूषण मुक्त त्यौहार मनाने की तरफ बढ़ना होगा, ऐसा करके हम अपने वातावरण को अधिक प्रदूषित होने से बचा सकते हैं.
ऐसा नहीं है दिवाली के पर्व पर पटाखे छोड़ना कोई परम्परा का हिस्सा हैं. बल्कि पटाखे निर्माता कम्पनियों ने अपने लाभ के लिए इस पवित्र पर्व को चुना. हम पूर्ण धार्मिक विधि विधान से पर्व मनाए, घर में रौशनी की खूब सजावट करे मगर पटाखों से दूरी बनाए यह हमारे बच्चों के भविष्य के लिए अच्छा कदम हो सकता हैं.
एक तरफ करोड़ों अरबों रूपये को व्यर्थ में गवा देते हैं. कई बार पटाखे छोड़ते समय बच्चों के हाथ जल जाने जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं. ऐसे में हमें कम से कम प्रदूषण के साथ दिवाली के पावन पर्व को मनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए.
भारत सरकार व राज्य सरकारों को भी त्योहारों पर होने वाले प्रदूषण को कम करने के उपाय करने चाहिए. अक्सर देखा गया हैं सुप्रीम कोर्ट भी इस विषय को समय समय पर उठाता रहा हैं. सरकार को चाहिए दिवाली ही नहीं ईद के दिन होने वाले जल प्रदूषण, रक्त बहाव तथा गंदगी के विषय को भी देखे तथा सभी धर्मों के पर्वों पर होने वाले प्रदूषण को कम करने के कठोर उपाय करे.