प्रश्न - प्रकृति किसके बल के सामने नहीं झुकती ?
उ०
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कवि का मानना है कि प्रकृति कभी भाग्य के बल से डरकर नहीं झुकती। वह सदा परिश्रम करने वालों से भयभीत रहती है। जब एक मेहनती व्यक्ति अपना पसीना बहाता है तब उसके सम्मुख प्रकृति को भी अपनी हार स्वीकार करनी पड़ती है।
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