प्रश्न - स्ववाचक या आत्मवाचक क्या है?
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Explanation:
समाज के बारे में पूर्व जानकारी अथवा समाज के साथ गहरा जुड़ाव सामाजिक अध्ययन की एक शाखा समाजशास्त्रा के लिए लाभप्रद तथा अलाभप्रद दोनों ही रहे हैं। इसका लाभ यह है की छात्र समाजशास्त्र से सामान्यतः भयभीत नहीं रहते-वे सोचते हैं की इस विषय का ज्ञान उनके लिए कठिन नहीं हो सकता।
इसका अलाभकारी पहलु यह है की कभी-कभी समाज के विषय मे पूर्व जानकारी समस्या का कारण बन जाती है। समाजशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के क्रम मे हमे समाज के बारे में अपनी पूर्व जानकारी को भुला देने अथवा मिटा देने की आवशयकता होती है।
समाजशास्त्र हमें इस बात की शिक्षा प्रदान करता है कि विश्व को सकारात्मक दृष्टी से न केवल स्वयं की बल्कि दूसरों की दृष्टि से भी किस प्रकार से देखें।
भारतीय समाज तथा उसकी संरचना की समझ से एक सामाजिक मानचित्र की प्राप्ति होती हैं, जिस पर आप स्वयं को एक भौगौलिक मानचित्र की तरह अवस्थित कर सकते हैं।
समाजशास्त्र आपका या अन्य लोगों का स्थान निर्धारित करने में मदद करने एवं विभिन्न सामाजिक समूहों के स्थानों का वर्णन करने के अलावा और भी बहुत कुछ कर सकता है।
समाजशास्त्र ‘व्यक्तिगत परेशानियों’ तथा ‘सामाजिक मुद्दों’ के बीच कड़ी तथा संबंधों का खाका खींचने में सहायक सिद्ध हो सकता है। व्यक्तिगत परेशानियों से यहाँ तात्पर्य उन निजी कष्टों, परेशानियों तथा संदर्भों से हैं, जो हर किसी के जीवन में निहित होते हैं।
नई तथा पुरानी पीढ़ियों के बीच ‘पीढ़ियों का अंतराल’ अथवा ‘संघर्ष’ एक सामाजिक परिघटना हैं, जो कई समाजों में काफी दिनों से समान रूप से रही है।
बेरोजगारी अथवा परिवर्तनशील व्यावसायिक संरचना में परिवर्तन का प्रभाव भी एक सामाजिक मुद्दा रहा है, जिससे विभिन्न वर्गों के लाखों लोग प्रभावित रहे हैं।
एक सामाजिक परिदृश्य आपको इस बात की शिक्षा देता है कि किस प्रकार से सामाजिक खाका तैयार करें।
भारत के अंतर्गत औपनिवेशिक शासनकाल में भारी कीमत चुकाकर राजनीतिक, आर्थिक तथा प्रशासनिक एकीकरण किया गया। औपनिवेशिक शोषण तथा प्रभुत्व ने भारतीय समाज को कई प्रकार से संत्रस्त किया, लेकिन इसके विरोधाभासस्वरूप उपनिवेशवाद ने अपने शत्रु राष्ट्रवाद को भी जन्म दिया।
ऐतिहासिक रूप से, भारतीय राष्ट्रवाद ने ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में ही अपना आकार ग्रहण किया। औपनिवेशिक शासन काल के प्रभुत्व के अनुभवों ने विभिन्न समुदाय के लोगों में एकता तथा ऊर्जा का संचार किया।
उपनिवेशवाद ने दो नए वर्गों तथा संप्रदायों को जन्म दिया, जिसने भावी इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
भारतीय समाज बहुलतावादी समाज है। इसमें भाषा, क्षेत्र, धर्म, जाति तथा रीति-रिवाजों की विभिन्नताएँ हैं। भारतीय समाज आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ रहा है।
भारतीय आधुनिकीकरण मॉडल के मुख्य मूल्य हैं-समाजवाद, साम्राज्यवाद, धर्मनिरपेक्षता, औद्योगीकरण, प्रजातंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मूलभूत अधिकार।
भारत में स्थापित लोकतंत्र जो कि समानता, स्वतंत्रता तथा सार्वभौमिक मताधिकार पर आधारित है, ने भारतीय समाज के परंपरागत ढाँचे को परिवर्तित किया है।
औपनिवेशिक काल में एक नई जागरूकता का भाव पैदा हुआ। इस काल में भारतीय लोग समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक-दूसरे के साथ हुए। इससे कई प्रकार के आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक परिवर्तन के आधुनिक रूप सामने आए।
ब्रिटिश शासनकाल में परिवर्तन की विभिन्न प्रक्रियाएँ प्रारंभ हुई। इनमें से कुछ पूरी तरह से बाह्य थीं, जबकि कुछ आंतरिक थीं। बाह्य प्रक्रियाओं में शामिल थे- पश्चिमीकरण, आधुनिकीकरण, धर्मनिरपेक्षता, औद्योगीकरण इत्यादि, जबकि संस्कृतिकरण तथा नगरीकरण आंतरिक प्रक्रियाएँ थीं। आधुनिकीकरण तथा पश्चिमीकरण हमारे ब्रिटेन के साथ संबंधों का परिणाम था।
उत्पादन में यांत्रिक तकनीक, व्यापार में बाज़ार पद्धति, परिवहन तथा संचार साधनों का विकास, नौकरशाही पर आधारित लोक सेवा की अवधारणा, औपचारिक तथा लिखित कानून, आधुनिक सैन्य संगठन, पृथक प्रशिक्षित विधिक पद्धति तथा आधुनिक औपचारिक शिक्षा पद्धति आदि महत्वपूर्ण कदम थे, जिन्होंने आधुनिकीकरण की पृष्ठभूमि तैयार की।
ब्रिटिश उपनिवेशवादी अपने हितों के दृष्टिगत ही सारे कदम उठा रहे थे।
परंपरा तथा आधुनिकता ने भारतीय समाज में ढेर सारी समस्याएँ पैदा कर दीं।
राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, केशव चंद्र सेन, दयानंद सरस्वती, रानाडे, तिलक तथा महात्मा गाँधी कुछ ऐसे प्रख्यात नाम थे जिन्होंने सती प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध, अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की दिशा में सामाजिक सुधार आदोलन चलाए।
क्योंकि भारत में समाजशास्त्र का उस समय व्यवस्थित रूप से विकास नहीं हुआ था, अत: इसमें भारतीय गाँवों का चित्रण ब्रिटिश नीतियों के अनुरूप किया गया।
गाँव भारतीय समाज तथा संस्कृति के स्तंभ रहे हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ईस्ट इंडिया कपनी ने भी भारतीय गाँवों का अध्ययन करने का विचार किया।
भारतीय समाज का प्रथम अध्ययन बी०एच० पॉवेल ने सन् 1892 में अपनी किताब ‘भारतीय ग्रामीण समुदाय’ (The Indian Village Community) के द्वारा किया।
समाजशास्त्र आपको ‘स्ववाचक’ अथवा ‘आत्मवाचक’ बनने की शिक्षा देता है। अर्थात् यह स्वयं को देखने तथा आत्मनिरीक्षण करने की शिक्षा देता हैं, परंतु इस आत्मनिरीक्षण में समीक्षा अधिक तथा आत्ममुग्धता कम होनी चाहिए।
pura read krna answer ke sath sath knowledgeable bhi hai. have a good time...