Hindi, asked by angadchawla, 4 months ago

प्रश्न- दिए गए संकेत बिंदुओं की सहायता से‘’जीवन में मित्र की आवश्र्कता’’ विषय पर 80-100

में अनुच्छेद लेखन कीजजए-

• जीवन में मित्र की भूममका

• मित्र - एक अनमोल धन

• सच्चे मित्र की पहचान

• सच्ची मित्रता ककेउदहारण​

Answers

Answered by ELECTROBRAINY
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Explanation:

व्यक्ति को प्रत्येक रिश्ता अपने जन्म से ही प्राप्त होता है, अन्य शब्दों में कहें तो ईश्वर पहले से बना के देता है, पर दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसका चुनाव व्यक्ति स्वयं करता है। सच्ची मित्रता रंग-रूप नहीं देखता, जात-पात नहीं देखता, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी तथा इसी प्रकार के किसी भी भेद-भाव का खंडन करती है। आमतौर पर यह समझा जाता है, मित्रता हम-उम्र के मध्य होती है पर यह गलत है मित्रता किसी भी उर्म में और किसी के साथ भी हो सकती है।

व्यक्ति के जीवन में मित्रता (दोस्ती) का महत्व

व्यक्ति के जन्म के बाद से वह अपनों के मध्य रहता हैं, खेलता हैं, उनसें सीखता हैं पर हर बात व्यक्ति हर किसी से साझा नहीं कर सकता। व्यक्ति का सच्चा मित्र ही उसके प्रत्येक राज़ को जानता है। पुस्तक ज्ञान की कुंजी है, तो एक सच्चा मित्र पूरा पुस्तकालय, जो हमें समय-समय पर जीवन के कठिनाईयों से लड़ने में सहायता प्रदान करते है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में दोस्तों की मुख्य भुमिका होती है। ऐसा कहा जाता है की व्यक्ति स्वयं जैसा होता है वह अपने जीवन में दोस्त भी वैसा ही चुनता है। और व्यक्ति से कुछ गलत होता है तो समाज उसके दोस्तों को भी समान रूप से उस गलती का भागीदार समझते हैं।

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जहां लोग आपसे बात भी अपने स्वार्थ सिद्धि के मनुकामना से करते हैं ऐसे में सच्ची मित्रता भी बहुत कम लोगों को प्राप्त हो पाती है। प्रचीन समय से ही लोग अपनी इच्छाओं व अकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दोस्ती करते हैं तथा अपना कार्य हो जाने पर अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं। इसलिए व्यक्ति को दोस्ती का हाथ हमेशा सोच समझ कर अन्य की ओर बढ़ाना चाहिए।

निष्कर्ष

व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण उसके द्वारा बनाए गए मित्र होते हैं, व्यक्ति को सदैव अपने मित्रों का चुनाव सोच-समझ कर करना चाहिए। जीवन में “सच्ची मित्रता” तथा “मतलब की मित्रता” में भेद कर पाना असल में एक चुनौती है तथा व्यक्ति को व्यक्ति की परख कर मित्रों का चुनाव करना चाहिए।

 

परिचय

व्यक्ति अपना सुख-दुख तथा हर तरह की बात जिससे बांट सके वह व्यक्ति का मित्र होता है। मित्रता जीवन के किसी भी पढ़ाव में आकर तथा किसी से भी हो सकता है। एक पिता अपनी पुत्री का मित्र हो सकता है, इसी तरह से मां बेटे में मित्रता हो सकती है, पति-पत्नि में भी मित्रता हो सकती है। यह आवश्यक नहीं की हम-उम्र के लोगों के मध्य ही मित्रता हो। सच्ची दोस्ती व्यक्ति को सदैव सही मार्ग  दिखाती है। नुखताचीनी (जिसमें सदैव व्यक्ति के हाँ में हाँ मिलाया जाता है) को मित्रता कहना अनुचित होगा।

 

अच्छे दोस्त हमें कभी नहीं खोने चाहिए

परिवार के बाद दोस्त व्यक्ति की दूसरी प्रथमिकता होता है। जिसके साथ वह हर अच्छे बुरे पलों को व्यतीत करता है। सुविख्यात कवि रहिमदास द्वारा एक चर्चित दोहे में कहा गया है, “टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। रहिमन फिर-फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार।” मतलब सच्चे मित्र जितनी बार आपसे रूठे उन्हें मना लेना चाहिए ठीक उसी प्रकार जैसे मोतीयों की माला के टूट के बिखर जाने पर हम उन्हें बार-बार पिरोते हैं क्योंकि वह मूल्यवान हैं, ठीक उसी प्रकार सच्चे मित्र भी मूल्यवान होते हैं और उन्हें नहीं खोना चाहिए।  जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मित्रता का महत्व होता है ठीक उसी प्रकार मेरे जीवन में भी है। मेरे मित्रों का समुह मेरे लिए दुसरे परिवार जैसा है।

मित्र बनाते समय हमारी लापरवाही

जीवन में व्यक्ति जिन आदतों को वहन करता है वह मित्रता की ही देन होती है। व्यक्ति के घर से निकलने पर उसकी पहली आवश्यकता मित्र होते हैं। सबसे पहले व्यक्ति मित्र बनाने की होड़ में लग जाता है, क्योंकी मानव सामाजिक प्राणी है तथा वह अकेला नहीं रह सकता। पर यह कितनी गंभीर बात है हम अपने लिए कोई जानवर भी लाते है तो अनेक तहक़ीक़ात कर के लाते हैं। पर हम मित्र बनाने में इतना समय नहीं लगाते जबकि मित्रता व्यक्ति का पतन भी करा सकती है। और व्यक्ति को कामयाबी के उच्च शिखर तक भी पहुंचा सकती है। ज्यादातर हम व्यक्ति को अपना मित्र बनाने से पहले उसके हाव-भाव तथा उसका हंसमुख चेहरा ही देखते है। जो संकट में हमारे काम नहीं आता है।

Answered by vaibhav2102007
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Answer:

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