प्रश्न २) दिए गए शब्दों का वर्णविच्छेद कीजिये।
क ) किताब
ख ) बंदर
ग )बाज़ार
घ )विकसित
ड़ ) समक्ष
Answers
Answer:
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Explanation:
वर्ण :
उस मूल ध्वनि को वर्ण कहते हैं, जिसके टुकड़े न हो सकें, जैसे- क् ख् ग् घ् आदि। इनके टुकड़े नहीं किये जा सकते। इन्हें अक्षर भी कहते हैं। अत: वर्ण या अक्षर भाषा की मूल ध्वनियों को कहते हैं। जैसे- ‘घट’ पद में घ् अ ट् अ ये मूल ध्वनियाँ हैं, जिन्हें वर्ण या अक्षर कहते हैं। इसी प्रकार अन्य पद भी समझिए, जैसे
राम – र् + आ + म् + अ
मोहन – म् + ओ + ह् + अ + न् + अ
पुरुष – प् + उ + र् + उ + ष् + अ
रमा – र् + अ + म् + आ
गीता – ग् + ई + त् + आ
वर्ण के भेद वर्ण दो प्रकार के होते हैं-
स्वर
व्यञ्जन
1. स्वर (अच्) :
जिन वर्गों का उच्चारण करने के लिए अन्य किसी वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती, उन्हें स्वर कहते हैं। स्वरों की संख्या 13 है- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लू ए ऐ ओ औ।
स्वरों का वर्गीकरण – उच्चारण काल अथवा मात्रा के आधार पर स्वर निम्न तीन प्रकार के माने गये हैं
ह्रस्व स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में केवल एक मात्रा का समय लगे अर्थात् कम से कम समय लगे उसे ह्रस्व स्वर कहते हैं, जैसे- अ, इ, उ, ऋ, लु। इनकी संख्या 5 है।
दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण काल में मूल स्वरों की अपेक्षा दुगुना समय, अर्थात् दो मात्राओं का समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। जैसे – आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। इनकी संख्या 8 है।
नोट – ए, ओ, ऐ, औ ये दीर्घ स्वर हैं। ये दो स्वरों के मेल से बनते हैं। इन्हें मिश्रित स्वर कहते हैं। जैसे – अ + इ = ए। अ + ए = ऐ। अ + उ = ओ। अ + ऊ = औ।
प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। इनमें तीन मात्राओं का उच्चारण काल होता है। प्लुत का ज्ञान कराने के लिए ३ का अंक स्वर के आगे लगाते हैं। जैसे-अ ३, इ ३, उ ३, ऋ ३, लु ३, ए ३, ऐ ३, ओ ३, औ ३ !
नोट – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत स्वरों की कुल संख्या 22 है, जिनमें ह्रस्व 5, दीर्घ 8 और प्लुत 9 हैं।
2. व्यंजन :
जिन वर्गों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है, वे व्यंजन कहलाते हैं। किसी व्यंजन का उच्चारण तभी किया जा सकता है, जब उसमें स्वर मिला हुआ हो। जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय फेफड़ों से निकलने वाली वायु मुख विवर या स्वर तंत्र के किसी भाग से टकरा कर घर्षण करती हुई या रुक कर बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन ध्वनियाँ कहते हैं। वर्णमाला में 33 व्यंजन होते हैं। जैसे-क्, ख्, ग् आदि। इनका उच्चारण स्वर लगाकर ही किया जा सकता है, जैसे क् + अ = क, ख् + अ = ख, ग् + अ = ग। स्वर रहित व्यंजन को उसके नीचे हल् ( ) चिह्न लगाकर लिखते हैं। प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के भेद
(i) स्पर्श व्यंजन
क वर्ग – क्, ख्, ग, घ, डू
च वर्ग – च्, छ्, ज, झ, ञ्
ट वर्ग – ठ् , ड्, ढ् , ण्
त वर्ग – त्, थ्, द्, ध्, न्
प वर्ग – प्, फ्, ब्, भ्, म्।
(ii) अंतस्थ व्यंजन – य्, र, ल, व्
(iii) उष्म व्यंजन – श्, ष, स्, हे
(iv) अयोगवाह व्यंजन – अनुस्वार (-) अनुनासिक (*) तथा विसर्ग (:)
(v) आगत व्यंजन – ड, ढ़।
(vi) व्यंजन गुच्छ – दो या दो से अधिक व्यंजनों के संयोग से बने अक्षर को व्यंजन गुच्छ कहते हैं। ये निम्नलिखित रूप में होते हैं
(क) संयुक्त व्यंजन – दो असमान व्यंजन संयुक्त होने पर अपना रूप बदल लेते हैं। जैसे – क् + ष = क्ष, ज् + अ = ज्ञ, श् + अ = श्र, त् + र = ञ, द् + य = द्य।
(ख) ‘र’ के विशिष्ट रूप –
(i) जब ‘र’ (स्वर रहित) किसी व्यंजन से पहले आता है तो उस व्यंजन के शीर्ष पर (‘) स्थान पाता है। जैसे – धर्म = धर्म, कर्म = कर्म।
(ii) जब ‘र’ (स्वर रहित) किसी व्यंजन से पहले आता है। तो तिरक्षा (´) रूप या (ˆ) रूप धारण कर लेता है। जैसे-प् + थ + म = प्रथम, क् + र + म = क्रम, ड् + र + म = डुम, रा + ष् + ट् + २ = राष्ट्र।
(ग) वित्व व्यंजन – दो समान व्यंजनों का साथ-साथ प्रयुक्त होना वित्व कहलाता है। जैसे – बच्चा, बब्बू, कच्ची, सम्मान आदि।
अन्य आधार पर व्यंजनों के भेद
(क) स्वर-तंत्रियों की स्थिति और कंपन के आधार पर :
घोष – जिन वर्गों के उच्चारण के समय फेफड़ों से निकलने वाली वायु स्वर-तंत्रियों से टकराकर (नाद) घोष उत्पन्न करती है, वे घोष वर्ण कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ व्यंजन (ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म), अंत:स्थ व्यंजन (य, र, ल, व), ‘ह’ एवं समस्त स्वरों अर्थात् अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ का ‘घोष’ प्रयत्न है।
अघोष – जिन वर्गों के उच्चारण में फेफड़ों से निकलने वाली वायु स्वर-तंत्रियों से बिना टकराये आसानी से निकल जाती है, वे अघोष वर्ण कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-प्रत्येक वर्ग के पहले, दूसरे व्यंजनों अर्थात् क, ख, च छ, ट ठ, त थ, प फ और श ष स का ‘अघोष’ प्रयत्न है।
(ख) वायु प्रक्षेप की दृष्टि से :
अल्पप्राण – जिन वर्गों के उच्चारण में कम हवा (प्राण या श्वास) बाहर निकलती है, वे ‘अल्पप्राण’ कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ व्यंजन, डु, य, र, ल, व तथा सभी स्वर अल्पप्राण हैं।
महाप्राण – जिन वर्गों के उच्चारण में अधिक हवा या श्वास बाहर निकलती है, वे महाप्राण कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा,