प्रश्न-'दिमागी गुलामी' निबंध का सार अपने शब्दों में लिखिये।
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‘दिमागी गुलामी‘ निबंध ‘राहुल सांकृत्यायन’ द्वारा लिखा गया एक वैचारिक निबंध है, जिसमें उन्होंने मानव की सोच पर प्रकाश डाला है। निबंध के माध्यम से लेखक ने यह स्पष्ट किया है की गति का दूसरा नाम ही जीवन है। विचारों की स्थिरता और जड़ता मनुष्य को मृत्यु और पतनी ओर ले जाती है। यह दिमागी गुलामी का प्रतीक है। विचारों का निरंतर प्रवाह बने रहना चाहिए कहते हैं क्योंकि दिमागी गुलामी यानी मानसिक दासता मानव के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं।
दिमागी गुलामी से तात्पर्य अनुपयोगी विचार, सोच और धारणाओं से है। ये धारणायें क्षेत्रवाद, प्रांतवाद, धर्मवाद, जातीवाद, राष्ट्रवाद आदि के नाम पर मानव के मन मस्तिष्क को जकड़ लेती हैं। लेखक के अनुसार जैसे-जैसे सभ्यता पुरानी होती जा रही है मानव का मन उतना ही अधिक जटिल होता जा रहा है।
आज विश्व में जो भी समस्याएं व्याप्त है, चाहे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, नैतिक, पारिवारिक हो, इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए अपने विचारधाराओं में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। जब तक विचारधारा नहीं बदलेगी और हम कुछ नया नहीं सोचेंगे, तब तक समस्याओं का निराकरण संभव नहीं। अपने प्राचीन गौरव से हम इतनी मजबूती से बंधे हुए हैं कि उनसे हमें ऊर्जा मिलती है। लेकिन हम अपने पूर्वजों की धार्मिक बातों को आँख मूंदकर उसका अनुसरण करते हैं और आज के समय में उनकी प्रासंगिकता को नहीं देखते, जबकि परिवर्तन समय का नियम है और निरंतर परिवर्तन होते रहने से ही उन्नति होती है।
दुनिया भर में धर्म के नाम पर है जो मुनाफे का कारोबार फैला हुआ है, उसने भी एक प्रकार की मानसिक दासता प्रदान की है। हमारे भारत देश का इतिहास इतना अधिक पुराना और समृद्ध है और उस में व्याप्त मान्यताएं भी उतनी अधिक प्रचलित हैं। हमारे भारत की जड़ों में अंधविश्वास बहुत अधिक है। हमें अपने प्राचीन गौरव पर अभिमान है और हमें अपने ऋषि-मुनियों के प्राचीन गौरव पर अभिमान रहा है। हम उनकी उपलब्धियों का जिक्र करते हैं, लेकिन हम उनके समान ही कुछ नया सृजन करने का नही सोचते।
लेखक का कहने का तात्पर्य है कि हमें आँख मूंदकर समय की प्रतीक्षा करने की बजाय अपनी मानसिक दासता की जंजीरों को तोड़ कर रख देना चाहिए और नई सोच को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब तक हम अपनी मानसिक दासता को दूर कर नवीन विचारों की क्रांति की आग अपने मन में नहीं जलाएंगे, तब तक मानव की उन्नति संभव नहीं हो पाएगी।
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