प्रश्न विप्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तरलिदिए-
बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, देव हमारे विपरीत है, अपनी सरलता की
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय की जनकल्न बनता ही नहत्तिा सफलता
और विजय कहाँ ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा
क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।
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I so sorry I don't understand
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