प्रश्ना.
'वसीयत नामे का रहस्य' पाठ के आधार पर बताइए कि वसीयत नामे के कारण क्या विवाद (झगड़ा) पैदा हो गया था?
महाराजा ने इसका समाधान कैसे किया था? लिखिए।
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Answer:
एक दिन पंचायत लगी हुई थी। तभी वहाँ से एक राहगीर निकला। उसने पंचों से राम-राम की और बैठ गया। पंचों ने राहगीर को पूरा मामला समझाया और सहायता करने को कहा। राहगीर को भी आश्चर्य हुआ। उसने पंचों को समझाया कि मामला इतना जटिल है कि इसका फैसला केवल महाराजा ही कर सकता है। उसने उन्हें महाराजा का पता भी बता दिया।
शब्दार्थ-पंचायत लगी हुई थी = पंचायत जुड़ी हुई थी; तभी = उसी समय; राहगीर = पथिक; राम = राम की = अभिवादन किया; आश्चर्य = अचम्भा; मामला = समस्या; जटिल = कठिन, उलझी हुई; फैसला = न्याय।
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के ‘वसीयतनामे का रहस्य से अवतरित है। इसके लेखक डॉ. परशुराम शुक्ल हैं।
प्रसंग-इस गद्यांश में पिता द्वारा की गई वसीयतनामे की कठिन समस्या के विषय में एक राहगीर के द्वारा उपाय बताया गया है।
व्याख्या-वसीयतनामे के रहस्य को (छिपी बात को) समझने के लिए एक दिन पंचायत बुलाई गई थी। पंचायत में सभी पंच उस वसीयतनामे की भाषा के अर्थ को समझ कर निर्णय करने का उपाय कर रहे थे परन्तु उन पंचों की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उसी समय वहाँ से एक पथिक अपने मार्ग से चला जा रहा था। उसने समस्या को सुलझाने के लिए जुटी पंचायत के सदस्यों को राम-राम कहकर अभिवादन किया और इसके बाद वहाँ चुपचाप बैठ गया। पंचायत के सदस्यों ने उस राहगीर को समस्या के विषय में समझाया तथा उससे प्रार्थना की कि वह भी उनकी (पंचायत के सदस्यों की) सहायता करे जिससे वसीयतनामे में लिखी भाषा के अर्थ को पूर्ण रूप से स्पष्ट समझा जा सके और सम्पत्ति का बँटवारा उसके अनुसार किया जा सके।
जब पथिक को भी वसीयतनामे में लिखी भाषा का अर्थ समझाने के लिए सभी पंचों ने कहा तो वह भी अचम्भे में पड़ गया। उसने कोशिश की परन्तु वह भी वसीयतनामे में लिखित भाषा के अर्थ को नहीं समझ पाया, इसलिए उस पथिक ने अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका फैसला (न्याय) तो महाराजा ही कर सकते हैं, कोई साधारण आदमी नहीं। उस पथिक ने उन पंचों को महाराजा का पता भी बता दिया कि वे महाराजा के पास उस पते पर मिल सकते हैं।
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