प्रश्र: 3.आज विकलांगों के प्रति हमारा कर्तव्य किस तरह बदल गया है और क्यों?
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विकलांग शरीर प्रकृति या ईश्वर का अभिशाप है, पृथ्वी पर भार है, समाज को चुनौती है, परिवार पर बोझ है। विकलांग व्यक्ति वह होता है जिसके शरीर का कोई अंग या तो जन्म से ही नहीं होता है जैसे किसी के दो की बजाये एक गुर्दा हो या उसका अंग स्वस्थ न होकर दोषपूर्ण हो जैसे अंधों, गूंगे-बहरों, कोढियों, लूले-लंगड़ों को विकलांग कहा जाता है। कुछ विकलांग ऐसे भी होते हैं जिनके शरीर के काम करनेवाले अंग तो सामान्य और स्वस्थ होते हैं, सुचारू ढंग से काम करते हैं परन्तु उनमें मानसिक विकृति होती है, उनका बौद्धिक विकाश अधुरा रहता है; वे पूरी तरह पागल तो नहीं होते पर अर्ध विक्षिप्त होने के कारण सामान्य-स्वस्थ व्यक्तियों की तरह काम नहीं क्र पाते। कुछ बच्चे टेढ़े अंगवाले होते हैं अत: वे उठने-बैठने में असमर्थ होते हैं। कुछ बच्चों के शरीरांग पशु-पक्षियों जैसे होते हैं। इन्हें प्रकृति का क्रूर उपहास कहा जाता है।
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