प्रशास्ति और शिलालेखी अंतर स्पष्ट
कीजिए
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प्रशास्ति :
किसी व्यक्ति या वस्तु की प्रशंसा में लिखा गया भाषण या ग्रन्थ प्रशस्ति (eulogy) कहलाता है। प्रशस्ति वंश के बारे में भी बताती है, इनका प्रयोग राजा या बड़े प्रधान द्वारा की जाती थी, ये अपने आत्म सम्मान में बड़े-बड़े प्रशस्तिया लिखवाते थे,एसे ही प्रशस्ति हमें गुप्तवंश के पहले शासक चंद्रगुप्त की मिलती है।
शिलालेखी :
शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मागधी में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं।