प्रष्न 11. भृगुबंसमनि किसे कहा गया है ?
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कुछ विद्वानों द्वारा इन्हें अग्नि से उत्पन्न बताया गया है, तो कुछ ने इन्हें ब्रह्मा की त्वचा एवं हृदय से उत्पन्न बताया है। कुछ विद्वान इनके पिता को वरुण बताते हैं। कुछ कवि तथा मनु को इनका जनक मानते हैं। कुछ का मानना है कि ब्रह्मा के बाद 7500 ईसा पूर्व प्रचेता नाम से एक ब्रह्मा हुए थे जिनके यहां भृगु का जन्म हुआ।
भृगु से भार्गव, च्यवन, और्व, आप्नुवान, जमदग्नि, दधीचि आदि के नाम से गोत्र चले। यदि हम ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु की बात करें तो वे आज से लगभग 9,400 वर्ष पूर्व हुए थे। इनके बड़े भाई का नाम अंगिरा था। अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि ऋषि इनके भाई हैं। ये विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षि मंडल में स्थान मिला है। पारसी धर्म के लोगों को अत्रि, भृगु और अंगिरा के कुल का माना जाता है। पारसी धर्म के संस्थापक जरथुष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना गया है। पारसियों का धर्मग्रंथ 'जेंद अवेस्ता' है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है।
(ब्रह्मा और सरस्वती से उत्पन्न पुत्र ऋषि सारस्वत थे। एक मान्यता अनुसार पुरूरवा और सरस्वती से उत्पन्न पुत्र सरस्वान थे। समस्त सारस्वत जाती का मूल ऋषि सारस्वत है। कुछ लोगों अनुसार दधीचि के पुत्र सारस्वत ऋषि थे। दधीचि के पिता ऋषि भृगु थे और भृगु के पिता ब्रह्मा। एक अन्य मान्यता अनुसार इंद्र ने 'अलंबूषा' नाम की एक अप्सरा को दधीचि का तप भंग करने के लिए भेजा। दधीचि इस समय देवताओं का तर्पण कर रहे थे। सुन्दरी अप्सरा को वहाँ देखकर उनका वीर्य रुस्खलित हो गया। सरस्वती नदी ने उस वीर्य को अपनी कुक्षी में धारण किया तथा एक पुत्र के रूप में जन्म दिया, जो कि 'सारस्वत' कहलाया।)
मान्यता है कि अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। जरथुस्त्र ने इस धर्म को एक व्यवस्था दी तो इस धर्म का नाम 'जरथुस्त्र' या 'जोराबियन धर्म' पड़ गया।
महर्षि भृगु की पहली पत्नी का नाम ख्याति था, जो उनके भाई दक्ष की कन्या थी। इसका मतलब ख्याति उनकी भतीजी थी। दक्ष की दूसरी कन्या सती से भगवान शंकर ने विवाह किया था। ख्याति से भृगु को 2 पुत्र दाता और विधाता मिले और 1 बेटी लक्ष्मी का जन्म हुआ। लक्ष्मी का विवाह उन्होंने भगवान विष्णु से कर दिया था।