प्रतीक्षा करते-करते सुबह पाँच बजे का समय आ ही गया| मेघराज का क्रोध कुछ शांत हो गया था और अब थोड़ी-थोड़ी बूँदाबांदी सी हो रही थी| हम सब चिंता तथा उत्सुकता से बाहर निकले तो देखा जैसे किसी दैत्य ने नगरी को उजाड़ दिया हो| अनेक मकान ध्वस्त हो गए थे| गौशालाओं ने भागीरथी के जल में समाधि ले ली थी| इस प्रकार प्रकृति के उग्र रूप का नग्न तांडव देखकर रोंगटे खड़े हो गए| चारों और लोगों का करुण क्रन्दन सुनाई दे रहा था| एक अजीब मौत का सन्नाटा चारों और था| मैं सोचने लगा कि प्रकृति पर विजय पाने का दंभ भरने वाला मानव उसके सम्मुख कितना बौना है, और प्रकृति में अनावश्यक छेड़छाड़ के कारण उसी ने ही स्वयं अपने विनाश का मार्ग प्रशस्त कर दिया है| अब भी समय है कि वह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक संपदा को संरक्षण प्रदान करे| इसी में उसका कल्याण है| क) उपरोक्त गद्यांश में किस परिस्थिति का वर्णन किया गया है? 2 ख) लोगों की क्या स्थिति हो गई थी? 2 ग) प्रकृति का प्रकोप देखकर मनुष्य स्वयं को कैसा महसूस करता है?
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- मानव प्रकृति के इस रूप को देख कर व्यक्त कर रह है, जो कि किसी भी समय आ सकता है | प्राकृति संपदा
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