प्रतिक्षण नूतन वेज्ञ बनाकर रंग विरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नथ में वारिद माला।।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊँपर नील गगन है।
घन पर चढ़ बीच में विचर्स यही चाहता मन हैं।।
1 पथिक का मन कहा विचरना चाहता हैं।
2 सागर को देखकर पथिक के मन में कैसे भाव उठते हैं
3 नभ में वारिद माला से कवि का क्या तात्पर्य ह
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nhi pta
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