History, asked by akashmeena8115, 11 months ago

प्रतिवादी धर्म सुधार आन्दोलन क्या था इसे सफल बनाने के साधनों का वर्णन करो।

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Answered by khalidimaad04
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Answer:

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Answered by shishir303
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प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन —

यूरोप में पुनर्जागरण काल के समय जब लोगों में जागरूकता आनी शुरू हुई तो कुछ लोगों ने कैथोलिक चर्चों में सुधार के लिए आवाज उठानी शुरू कर दीm लेकिन उनकी आवाज को दबा दिया गया। उस समय पोप और चर्च के धर्माधिकारी भोग विलास में डूबे रहते थे। ऐसे में लूथर और काल्विन जैसे लोगों ने विद्रोह करना आरंभ कर दिया और प्रोटेस्टेंट मत का प्रचार-प्रसार बढ़ने लगा तो कैथोलिक चर्च वाले जैसे नींद से जागे और उनके सामने स्वयं के अस्तित्व का संकट पैदा हो गया। यूरोप में एक के बाद एक प्रोटेस्टेंट धर्म मत को मानने वाले राज्य बढ़ते जा रहे थे। ऐसे में कैथोलिक चर्चों को बचाने और प्रोटेस्टेंट आंदोलन को रोकने के लिए कुछ सुधारात्मक उपाय किए जाने लगे। यह सुधारात्मक उपाय ही प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन के का हिस्सा थे और इसे प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन कहते हैं।

प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए थे...

  • इटली के ट्रेंट नामक जगह पर एक कैथोलिक धर्म सभा का आयोजन किया गया। उसमें कैथोलिक धर्म से संबंध रखने वाले अनेक विद्वानों को बुलाया गया और आपस में गहन चिंतन किया गया। इस सभा में सिद्धांत और सुधार संबंधी दो तरह के फैसले लिए गए। सुधारात्मक उपायों के अंतर्गत चर्च के पदों की बिक्री समाप्त खत्म कर दी गई और पादरियों को सख्त निर्देश दिया गया कि वह अपनी मर्यादा में रहकर आदर्श जीवन बिताएं। पादरियों की शिक्षा का भी उचित प्रबंध किया गया।
  • धार्मिक न्यायालय की स्थापना की गई ताकि प्रोटेस्टेंटवादियों को रोका जा सके। कैथोलिक धर्म के लचर व्यवस्था का पता लगाने तथा नास्तिक और धर्म विरोधी लोगों को कठोर सजा देने की व्यवस्था की गई।
  • सोसाइटी ऑफ जीसस की स्थापना की गई और इस सोसाइटी से जो प्रशिक्षण प्राप्त कर लेता था उसे अनेक तरह के विशिष्ट कार्य दिए जाते थे। यह कार्य पादरी, डॉक्टर, शिक्षक आदि के होते थे। इस संस्था के सारे सदस्यों को अनुशासन में रहकर कैथोलिक धर्म की निस्वार्थ सेवा करने के लिए प्रेरित किया जाने लगा तथा उन्हें पवित्रता और आदर्श जीवन जीने के लिये विशेष जोर दिया जाने लगा। उन्हें पोप के प्रति अपनी आस्था प्रकट करनी होती थी और पोप के नाम की शपथ लेनी होती थी। इस सोसायटी के अनेक सदस्यों को कैथोलिक धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए विश्व के अनेक देशों में भेजा गया।
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