प्रत्यहं किं प्रत्यवेक्षेत ?
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प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः। किं नु मे पशुभिस्तुल्यं किं नु सत्पुरुषैरिति॥ मनुष्य को चाहिये कि वह सदैव अपने चरित्र का निरीक्षण करता रहे। यह ध्यान बनाये रखे कि वह जो विचार कार्य और व्यवहार कर रहा है वह मानवीय हैं या पशुओं जैसा ?
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