प्रदूषण एक समस्या जानकारी
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पर्यावरण-प्रदूषण एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। इसके साथ मानव समाज के जीवन-मरण का महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़ा है। हमारा दायित्व है कि समय रहते इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाएं। यदि इसके लिए आवश्यक उपाय नहीं किए गए तो प्रदूषण-युक्त इस वातावरण में पूरी मानव-जाति का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। आज मनुष्य अपनी सुख-सुविधा के लिए प्राकृतिक संपदाओं का अनुचित रूप से दोहन कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप यह समस्या सामने आई है।
सबसे पहले हमारे सामने यह प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रदूषण क्या है? जल, वायु व भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण है। एक और दुनिया तेजी से विकास कर रही है, जिंदगी को सजाने-संवारने के नए-नए तरीके ढूंढ़ रही है, दूसरी ओर वह तेजी से प्रदूषित होती जा रही है। इस प्रदूषण के कारण जीना दूभर होता जा रहा है। आज आसमान जहरीले धुएं से भरता जा रहा है। नदियों का पानी गंदा होता जा रहा है। सारी जलवायु, सारा वातावरण दूषित हो गया है। इसी वातावरण दूषण का वैज्ञानिक नाम है-प्रदूषण या पॉल्यूशन।
हमारा पर्यावरण किन कारणों से प्रदूषित हो रहा है? आज सारे विश्व के समक्ष जनसंख्या की वृद्धि सबसे बड़ी समस्या है। पर्यावरण प्रदूषण में जनसंख्या की वृद्धि ने अहम् भूमिका का निर्वाह किया है।
औद्योगीकरण के कारण आए दिन नए-नए कारखानों की स्थापना की जा रही है, इनसे निकलने वाले धुएं के कारण वायुमंडल प्रदूषित हो रहा है। साथ ही मोटरों, रेलगाड़ियों आदि से निकलने वाले धुएं से भी पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। इसके कारण सांस लेने के लिए शुद्ध वायु का मिल पाना मुश्किल है।
वायु के साथ-साथ जल भी प्रदूषित हो गया है। नदियों का पानी दूषित करने में बड़े कारखानों का सबसे बड़ा हाथ है। कारखानों का सारा कूड़ा-कचरा नदी के हवाले कर दिया जाता है, बिना यह सोचे कि इनमें से बहुत कुछ पानी में इस प्रकार घुल जाएंगे कि मछलियां मर जाएंगी और मनुष्य पी नहीं सकेंगे। राइन नदी के पानी का जब विशेषज्ञों ने समुद्र में गिरने से पूर्व परीक्षण किया तो एक घन सेंटीमीटर में बीस लाख जीवन-विरोधी तत्व मिले। कबीरदास के युग में भले ही बंधा पानी ही गंदा होता हो, आज तो बहता पानी भी निर्मल नहीं रह गया है, बल्कि उसके दूषित होने की संभावना और बढ़ गई है।
पर्यावरण प्रदूषण को वायु प्रदूषण या वातावरण प्रदूषण भी कहते हैं। वातावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- वात+आवरण अर्थात् वायु का आवरण। पृथ्वी वायु की मोटी पर्त से ढकी हुई है। एक निश्चित ऊंचाई के पश्चात् यह पर्त पतली होती गई है। वायु नाना प्रकार की गैसों से मिलकर बनती है। वायु में ये गैसें एक निश्चित अनुपात में होती हैं। यदि इसके अनुपात में संतुलन बिगड़ जाएगा तो मानव या सभी जीवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
हम सभी अपनी सांस में वायु से ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। मोटर गाड़ियों, स्कूटरों आदि वाहनों से निकला विषैला धुआं वायु को प्रदूषित करता है। अमेरिका में प्रत्येक तीन व्यक्ति के पीछे कार है, जिनसे प्रतिदिन ढाई लाख टन विषैला धुआं निकलता है। पेड़-पौधे इस विषैली कार्बन डाइऑक्साइड को सांस के रूप में ग्रहण कर लेते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं वायुमंडल में इन जहरीली गैसों का अधिक दबाव बढ़ना ही प्रदूषण कहा जाता है। कोयले आदि ईंधनों के जलाए जाने से उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है।
यह अन्य सभी प्रदूषणों से अधिक भयावह है। विषैली गैसें पृथ्वी के वायुमंडल को उष्ण बना देती हैं, फलस्वरूप तापमान बढ़ जाता है। ध्रुव प्रदेशों का बर्फ पिघलने लगता है, समुद्र का स्तर ऊंचा हो जाता है। इससे समुद्र तट पर रहने वालों को खतरा उत्पन्न हो जाता है। विषैली वायु में श्वास लेने से दमा, तपेदिक और कैंसर आदि भयानक रोग हो जाते हैं, जिससे मनुष्य का जीवन संकटमय हो जाता है।
आजकल बड़ी फ़ैक्टरियों और कारखानों के हजारों टन दूषित रासायनिक द्रव्य नदियों में बहाए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रहता। मल-मूत्र तथा गंदे नाले नदियों में मिलने से जल को गंदा कर देते हैं, जिससे जल-प्रदूषण बढ़ जाता है और इससे अनेक रोग हो जाते हैं। समुद्र में मिलकर नदियों का प्रदूषित पानी जल के जीवों के लिए भी घातक सिद्ध हो रहा है। समुद्र के खारे पानी से मीठे का संतुलन बिगड़ जाता है। प्रदूषित जल का प्रयोग मानव-जीवन को अनेक बीमारियों से ग्रस्त कर देता है। इस खराब रासायनिक मिश्रित पानी से धरती की उपजाऊ शक्ति भी क्षीण हो रही है, जो अतिविचारणीय है।
भूमि पर मिट्टी में होने वाले दुष्प्रभाव को थल-प्रदूषण कहा जाता है। खाद्य पदार्थों की उपज बढ़ाने और फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़े को मारने के लिए जो डी.डी.टी. या अन्य विषैली दवाइयां भूमि पर छिड़की जाती हैं, वे दवाएं मिट्टी में मिलकर भूमि को दूषित बना देती हैं। इससे धरती की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। प्रयोग करने वालों के लिए भी यह हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
आजकल ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। मोटरकार, स्कूटर, हवाई जहाज, रेडियो, लाउडस्पीकर, कारखानों के सायरनों तथा द्रुतगति से चलने वाली मशीनों की आवाज से ध्वनि प्रदूषण दिन दूना, रात चौगुना बढ़ रहा है। इन सबका असह्य शोर ध्वनि प्रदूषण को जन्म देकर मनुष्य की पाचन शक्ति पर भी प्रभाव डालता है। नगर के लोगों को रात्रि में नींद नहीं आती, कभी-कभी तो मानव मस्तिष्क पर इतना प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है कि मानव पागलपन के रोग से ग्रसित हो जाता है।