प्रदूषण मुक्त दिल्ली पर एक आकर्षक विज्ञापन बनाइए
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ताकि दीवाली प्रदूषण की नहीं, प्रकाश की विजय का पर्व बने
यदि सरकार को सच में दीवाली पर होने वाले प्रदूषण की चिंता है तो उसके लिए दो उपाय विज्ञापन से कहीं ज्यादा असरदार हो सकते हैं.
गायत्री आर्य
11 नवंबर 2015
ताकि दीवाली प्रदूषण की नहीं, प्रकाश की विजय का पर्व बने
यदि सरकार को सच में दीवाली पर होने वाले प्रदूषण की चिंता है तो उसके लिए दो उपाय विज्ञापन से कहीं ज्यादा असरदार हो सकते हैं.
दीवाली के समय दो विरोधी महकमे एक साथ बेहद सक्रिय हो जाते हैं. एक आतिशबाजी उद्योग दूसरा प्रदूषण विभाग. दीवाली से ठीक पहले अखबारों और टीवी पर सरकारी विज्ञापनों की भरमार होती है. इनका संदेश का मजमून यही होता है कि आतिशबाजी न करें और शहर को प्रदूषण मुक्त बनाए रखें.
आतिशबाजी से सिर्फ धुआं नहीं निकलता. उससे खुशी, उमंग, त्यौहार के होने का अहसास भी फूटता है. बच्चे से लेकर बूढ़ों तक ऐसा कोई नहीं, रंगीन आतिशबाजी जिसका मन न मोह लेती हो. सांस लेना कितना भी दूभर हो जाए, जोश, उमंग और त्यौहार के नशे में पर्यावरण के खराब होने की चिंता कहां सांस ले पाती है? ऐसी चीज को छोड़ना कितना ज्यादा निरुत्साही है जो उत्साह और खुशी से भर देती हो.
अगर पटाखे जलाने ही नहीं तो वे बने ही क्यों हैं? वे बिक क्यों रहें हैं? क्या आतिशबाजी उद्योग अरबों रुपये लगाकर पटाखे इसलिए बनाता है कि कोई उन्हें न खरीेदे?
सरकारी विज्ञापनों को देखकर यह सवाल सहज ही मन में आता है कि अगर पटाखे जलाने ही नहीं तो वे बने ही क्यों हैं? वे बिक क्यों रहें हैं? क्या आतिशबाजी उद्योग अरबों रुपये लगाकर पटाखे इसलिए बनाता है कि कोई उन्हें न खरीेदे? जिन चीजों के प्रयोग पर पाबंदी के लिए सरकार को इतनी मशक्कत करनी पड़े, इतने विज्ञापन देने पड़ें, उनके उत्पादन की अनुमति ही वह क्यों दे रही है?