Hindi, asked by cheesecakehobia, 16 days ago

प्रदूषण मुक्त दिवाली आज की जरूरत है, इस विषय पर एक लेख लिखें

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Answered by rinadebishaw
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Answer:

please ask the question in bengali and English

so I am sorry for this

Explanation:

pls give me brainlist

Answered by simra4825
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Explanation:

दीपावली में लोग घर की साफ सफाई करते हैं. साफ सफाई करना बहुत ही अच्छी बात है. जहाँ तक साफ सफाई की बात है सबको अपने घर ,गली मुहल्लों की सफाई करनी या करवानी चाहिए (मात्र दीपावली में ही नहीं बल्कि सदैव),साथ ही साथ अगर मन की भी सफाई को अत्यावश्यक समझा जाये तो शायद ज्यादा अच्छा रहेगा. अन्दर की कलुषता को दूर करना परमावश्यक समझा जाये तो और अच्छा है. अर्थात हर तरह से प्रदूषण मुक्त. वातावरण का प्रदूषण हो या और कोई प्रदूषण. दीपावली में सबकुछ प्रदूषण मुक्त होना चाहिए. न धुंआ जनित प्रदूषण न आवाज का प्रदूषण न शारीरिक प्रदूषण न मानसिक प्रदूषण अर्थात हर तरह से साफ सफाई पूर्ण होना चाहिए. इस पर्व को सही मायने में मानना है तो प्रदूषण मुक्त दीपावली मनना होगा. यह खुशियों का त्यौहार है. न की प्रदूषण फैलाकर दुखी करने का. दीपावली दीपों का त्यौहार है. बेशक दीप जलाएं. घर बाहर दीप जलना बहुत रमणीय लगता है. दीप के साथ-साथ हमें अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाना चाहिए. किम्वदंती या पौराणिक है पता नहीं लेकिन सुना है की दशरथ पुत्र श्री राम जब लंकापति को मारकर तथा वनवास पूरा कर अपने अयोध्या लौटे तो उनके विजयपर्व को मनाने तथा उनकी बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय को समर्थन देने हेतु नगरवासियों ने उनका स्वागत करने के लिए प्रतीक रूप में यह दर्शाने केलिए की अब उजाला हुआ अर्थात अब हम अँधेरे से मुक्त हो गए यह बताने केलिए दीप प्रज्वलित कर दीपक जलाकर , उजाला कर हर्ष मनाने हेतु यह कार्यक्रम किया और कालांतर में यह दीपावली के रूप में हर साल मनाया जाने लगा. पर पता नहीं कब इसमें इस तरह की परिवर्तन आ गया की लोग दीप मात्र न जलाकर पटाखे भी जलाने लगे. दीपावली तो आज त्यौहार से अधिक दिखावों का पर्व बन कर रह गया है. दमघोटू पटाखे की आवज से सारा वातावरण भयाक्रांत हो जाता है. कहाँ पहले लोग रावण के भय से मुक्त होने के वजह से दीपावली मना रहे थे और अब हम दीपावली में प्रदूषणयुक्त पटाखे की आवाज (आज का रावण ) से भयाक्रांत हो रहें हैं. पटाखों की धुँआ से सर्वत्र वातावरण प्रदूषित हो धुंध- मय हो जाता है. यह दिखावा नहीं तो और क्या है ? कहीं तो लोग गरीबी से जूझ रहे होते है और कहीं हजारों रुपये पटाखों पर बर्बाद कर दिए जाते हैं. हर साल पटाखों के कारण न जाने कितने हादसे होती रहती है. पटाखे बनाने वाले कारखानों में अक्सर बाल- मजदूर से जबरन काम कराया जाता है और आए दिन हम समाचार पत्रों में पढ़ते हैं की हजारों लोग इन कारखानों में हादसे के कारण या कार्य - जनित बिमारियों के कारण मारे जाते है. हम कैसे इन सभी को भुलाकर पटाखों का प्रयोग अपने तथाकथित आनंद के लिए कर सकते हैं? क्या यह उचित है? नहीं यह सरासर अनुचित है. अतः हम इस दीपावली पर यह शपथ लें कि हम किसी भी तरह इस बार पटाखे का प्रयोग नहीं करेंगे. हम प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाएंगे

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