प्रथम चुनाव के समय चुनाव आयोग के समय कौन सी चुनौतियां थी
Answers
Answered by
8
- दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावों का संचालन किसी महाकुंभ के आयोजन से कम नहीं है. अप्रैल और मई में कई चरणों में होने वाले आम चुनावों के लिए आयोग ने महीनों पहले से तैयारी शुरू कर दी है. लेकिन बावजूद उसके उसे अब तक कुछ चुनौतियों से पार पाने की राह नहीं मिल सकी है.
चुनौतियां
- पहले मतदाता सूची में संशोधन के मुद्दे पर जूझने के बाद अब उसके समक्ष चुनाव में धन और बाहुबल के बढ़ते प्रभुत्व पर अंकुश लगाने, चुनावी आचार संहिता को कड़ाई से लागू करने और चुनावी धांधलियों को रोकने की कड़ी चुनौती है. कहने को तो देश के तमाम राजनीतिक दल खुद को पाक साफ बताते हुए विपक्ष पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन किसी भी दल का दामन चुनावी भ्रष्टाचार के छीटों से अछूता नहीं है. ऐसे में आयोग की चुनौती और कठिन हो गई है.
- देश के तमाम राज्यों में चुनावी धांधलियों और उम्मीदवारों की ओर से चुनाव खर्च की तय सीमा का उल्लंघन आम है. आयोग हालांकि इन खर्चों पर निगाह रखने के लिए पूरे देश में हजारों पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है. बावजूद इसके इन पर पूरी तरह अंकुश लगाना संभव नहीं हो सका है. राजनीतिक दलों में चुनावी आचार संहिता लागू होने से पहले ही तमाम परियोजनाओँ के एलान की होड़ लग जाती है. राजनीति का अपराधीकरण बरसों से आयोग के लिए चिंता का विषय रहा है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने एक नया कानून बना कर दागियों के लिए कानून का निर्माता बनने का रास्ता साफ कर दिया है.
सोशल मीडिया का असर
- सोशल मीडिया के बढ़ते असर और आम लोगों तक इसकी पहुंच ने आयोग के समक्ष एक नई मुश्किल पैदा कर दी है. किसी भी चुनाव में मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार खत्म हो जाता है. लेकिन ट्विटर और फेसबुक जैसी साइटों की सहायता से तमाम राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार मतदान के दौरान भी अपना प्रचार जारी रख सकते है. फिलहाल देश में इन नेटवर्किंग साइटों पर अंकुश लगाने के लिए कोई कानून नहीं है. इस मुद्दे पर चुनाव आयोग ने 10 फरवरी को देश के तमाम राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों के साथ बैठक की थी. लेकिन उसमें भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका.
- देश के तमाम दल अपनी नीतियों के प्रचार-प्रसार के लिए इन साइटों का जमकर सहारा ले रहे हैं. भाजपा के बंगाल प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा कहते हैं, "प्रधानमंत्री पद के हमारे उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि बनाने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही है." लगभग हर पार्टी ने इसके लिए एक अलग सेल का गठन कर लिया है. राजनीतिक दल भी अब इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं कि आखिर इन साइटों पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी, कांग्रेस विधायक दल के नेता मानस भुंइया और भाजपा के राहुल सिन्हा का सवाल है कि अगर कोई पार्टी या उम्मीदवार आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए सोशल मीडिया के जरिए मतदान के दिन तक प्रचार जारी रखता है तो आयोग उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा?
- लेकिन फिलहाल आयोग के पास खुद ही इस सवाल का जवाब नहीं है. एक अध्ययन के मुताबिक, 31 मार्च 2013 तक देश में 7.30 करोड़ लोग विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइटों के सदस्य बन चुके थे. अब साल भर में इस तादाद में और एकाध करोड़ का इजाफा हुआ ही होगा. राजनीतिक विश्लेषक सुमन दासगुप्ता कहते हैं, "सरकार और आयोग को पहले ही इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए था. इसके लिए नया कानून बनाना जरूरी है." वह मानते हैं कि सोशल मीडिया ने चुनाव आयोग के समक्ष एक मुश्किल चुनौती खड़ी कर दी है.
hope it will help you!!
Mark as brainleist!!
Similar questions
Political Science,
2 months ago
Biology,
2 months ago
Social Sciences,
2 months ago
Political Science,
4 months ago
Science,
4 months ago
Physics,
10 months ago
History,
10 months ago