Political Science, asked by satishkumarsuryawans, 8 months ago

प्रथम स्वतंत्र आंदोलन और अट्ठारह सौ सत्तावन के कारणों का वर्णन कीजिए ​

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Answered by rk660725952
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Answer:

विवरण इस क्रान्ति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, परन्तु कालान्तर में उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।

आरम्भ तिथि 10 मई 1857

प्रमुख स्थान मेरठ, कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध

प्रमुख व्यक्ति मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब पेशवा, बहादुर शाह जफ़र, महारानी विक्टोरिया, लॉर्ड विलियम बैंटिक

परिणाम विद्रोह का दमन, ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत, नियंत्रण ब्रिटिश ताज (महारानी विक्टोरिया) के हाथ में

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अन्य जानकारी विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हुआ और हिन्दू-मुस्लिम एकता ने ज़ोर पकड़ना शुरू किया, जिसका कालान्तर में राष्ट्रीय आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

लॉर्ड कैनिंग के गवर्नर-जनरल के रूप में शासन करने के दौरान ही 1857 ई. की महान् क्रान्ति हुई। इस क्रान्ति का आरम्भ 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुआ, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गया। इस क्रान्ति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, परन्तु कालान्तर में उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया। 1857 ई. की इस महान् क्रान्ति के स्वरूप को लेकर विद्धान एक मत नहीं है। इस बारे में विद्वानों ने अपने अलग-अलग मत प्रतिपादित किये हैं, जो इस प्रकार हैं-'सिपाही विद्रोह', 'स्वतन्त्रता संग्राम', 'सामन्तवादी प्रतिक्रिया', 'जनक्रान्ति', 'राष्ट्रीय विद्रोह', 'मुस्लिम षडयंत्र', 'ईसाई धर्म के विरुद्ध एक धर्म युद्ध' और 'सभ्यता एवं बर्बरता का संघर्ष' आदि।

Explanation:

क्रान्ति के कारण

राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लॉर्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा। 1833 के चार्टर एक्ट के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्षेपजनक रीति से ईसाई धर्म का प्रचार, लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें; इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई. में क्रांति के रूप में भड़क उठी। 1857 ई. की क्रान्ति कोई अचानक भड़का हुआ विद्रोह नहीं था, वरन् इसके साथ अनेक आधारभूत कारण थे, जो निम्नलिखित हैं-

राजनीतिक कारण

आर्थिक कारण

धार्मिक कारण

सामाजिक कारण

सैनिक असन्तोष

राजनीतिक कारण

राजनीतिक कारणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण के रूप में लॉर्ड डलहौज़ी की 'गोद निषेध प्रथा' या 'हड़प नीति' को माना जाता है। डलहौज़ी ने अपनी इस नीति के अन्तर्गत सतारा, नागपुर, सम्भलपुर, झांसी तथा बरार आदि राज्यों पर अधिकार कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप इन राजवंशों में अंग्रेज़ हुकूमत के ख़िलाफ़ असन्तोष व्याप्त हो गया। कुशासन के आधार पर डलहौज़ी ने हैदराबाद तथा अवध को अंग्रेज़ी साम्राज्य के अधीन कर लिया, जबकि इन स्थानों पर कुशासन फैलाने के ज़िम्मेदार स्वयं अंग्रेज़ ही थे। अवध के अधिग्रहण की ज़बरदस्त प्रतिक्रिया हुई। उस समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी में अवध के 7500 सिपाही थे। अवध को एक चीफ़ कमिश्नर का क्षेत्र बना दिया गया। हेनरी लॉरेन्स पहला चीफ़ कमीश्नर नियुक्त हुआ था। पंजाब और सिंध का विलय भी अंग्रेज़ी हुकूमत ने कूटनीति के द्वारा अंग्रेज़ी साम्राज्य में कर लिया, जो कालान्तर में विद्रोह का एक कारण बना। पेंशनों एवं पदों की समाप्ति से भी अनेक राजाओं में असन्तोष व्याप्त था। उदाहरणार्थ- नाना साहब को मिलने वाली पेंशन को डलहौज़ी ने अपनी नवीन नीति के द्वारा बन्द करवा दिया। मुग़ल सम्राट को 'राजा' माना जाएगा तथा उन्हें लाल क़िला छोड़कर कुतुबमीनार के समीप किसी अन्य क़िले में स्थान्तरित होना पड़ेगा। इसके अलावा सिक्कों से बहादुर शाह ज़फ़र का नाम हटा दिया गया, जिससे जनता क्षुब्ध हो गई।

कुलीनवर्गीय भारतीय तथा ज़मींदारों के साथ अंग्रेज़ों ने बुरा व्यवहार किया और उन्हें मिले समस्त विशेषाधिकारों को कम्पनी की सत्ता ने छीन लिया। ऐसी परिस्थिति में इस वर्ग के लोगों के असन्तोष का सामना भी ब्रिटिश सत्ता को करना पड़ा। भारतीय सरकारी कर्मचारियों ने अंग्रेज़ों द्वारा सरकारी नौकरियों में अपनायी जाने वाली भेदभावपूर्ण नीति का विरोध करते हुए विद्रोह में सिरकत की। कुल मिलाकर भारतीय जनता अंग्रेज़ों के बर्बर प्रशासन से तंग आकर उनकी दासता से मुक्त होना चाहती थी, इसलिए 1857 की क्रांति हुई।

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