प्रथम विश्वयुद्ध के कोई छ: कारण लिखिए।
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प्रथम विश्वयुद्ध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे | इनमे निम्न्न्लिखित महत्वपूर्ण हैं:-
युरोपीय शक्ति – संतुलन का बिगड़ना-
1871 में जर्मनी के एकीकरण के पूर्व युरोपीय राजनीती में जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी, परन्तु बिस्मार्क के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ. इससे युरोपीय शक्ति – संतुलन गड़बड़ा गया. इंग्लैंड और फ्रांस के लिए जर्मनी एक चुनौती बन गया. इससे युरोपीय राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ी.
गुप्त संधिया एवं गुटों का निर्माण-
जर्मनी के एकीकरण के पश्चात वहां के चांसलर बिस्मार्क ने अपने देश को युरोपीय राजनीती में प्रभावशाली बनाने के लिए तथा फ्रांस को यूरोप की राजनीती में मित्रविहीन बनाए रखने के लिए गुप्त संधियों की नीतियाँ अपनायीं. उसने ऑस्ट्रिया- हंगरी (1879) के साथ द्वैत संधि (Dual Alliance) की. रूस (1881 और 1887) के साथ भी मैत्री संधि की गयी. इंग्लैंड के साथ भी बिस्मार्क ने मैत्रीवत सम्बन्ध बनाये. 1882 में उसने इटली और ऑस्ट्रिया के साथ मैत्री संधि की. फलस्वरूप , यूरोप में एक नए गुट का निर्माण हुआ जिसे त्रिगुट संधि (Triple Alliance) कहा जाता है. इसमें जर्मनी , ऑस्ट्रिया- हंगरी एवं इटली सम्मिलित थे. इंगलैंड और फ्रांस इस गुट से अलग रहे
जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता-
जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी. जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्सेस- लौरेन पर अधिकार कर लिया था. मोरक्को में भी फ़्रांसिसी हितो को क्षति पहुचाई गयी थी. इसलीये फ्रांस का जनमत जर्मनी के विरुद्ध था. फ्रांस सदैव जर्मनी को नीचा दिखलाने के प्रयास में लगा रहता था. दूसरी ओर जर्मनी भी फ्रांस को शक्तिहीन बनाये रखना चाहता था. इसलिए जर्मनी ने फ्रांस को मित्रविहीन बनाये रखने के लिए त्रिगुट समझौते किया| बदले में फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध अपने सहयोगी राष्ट्रों का गुट बना लिया. प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता इतनी बढ़ गयी की इसने युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया.
जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता-
जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी. जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्सेस- लौरेन पर अधिकार कर लिया था. मोरक्को में भी फ़्रांसिसी हितो को क्षति पहुचाई गयी थी. इसलीये फ्रांस का जनमत जर्मनी के विरुद्ध था. फ्रांस सदैव जर्मनी को नीचा दिखलाने के प्रयास में लगा रहता था. दूसरी ओर जर्मनी भी फ्रांस को शक्तिहीन बनाये रखना चाहता था. इसलिए जर्मनी ने फ्रांस को मित्रविहीन बनाये रखने के लिए त्रिगुट समझौते किया| बदले में फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध अपने सहयोगी राष्ट्रों का गुट बना लिया. प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता इतनी बढ़ गयी की इसने युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया.
साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा
साम्राज्यवादी देशों का साम्राज्य विस्तार के लिए आपसी प्रतिद्वंदिता एवं हितों की टकराहट प्रथम विश्वयुद्ध का मूल कारण माना जा सकता है.
औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कल-कारखानों को चलाने के लिए कच्चा माल एवं कारखानों में उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए बाजार की आवश्यकता पड़ी. फलस्वरुप साम्राज्यवादी शक्तियों इंग्लैंड फ्रांस और रूस ने एशिया और अफ्रीका में अपने-अपने उपनिवेश बनाकर उन पर अधिकार कर लिए थे.
जर्मनी और इटली जब बाद में उपनिवेशवादी दौड़ में सम्मिलित हुए तो उन के विस्तार के लिए बहुत कम संभावना थी. अतः इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई. यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की.
प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने के पूर्व तक जर्मनी की आर्थिक एवं औद्योगिक स्थिति अत्यंत सुदृढ़ हो चुकी थी. अतः जर्मन सम्राट धरती पर और सूर्य के नीचे जर्मनी को समुचित स्थान दिलाने के लिए व्यग्र हो उठा. उसकी थल सेना तो मजबूत थी ही अब वह एक मजबूत जहाजी बेड़ा का निर्माण कर अपने साम्राज्य का विकास तथा इंग्लैंड के समुद्र पर स्वामित्व को चुनौती देने के प्रयास में लग गया.
1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्धा के परिणाम स्वरुप अगादिर का संकट उत्पन्न हो गया. इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह विफल हो गया. 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज इमपरेटर बनाया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज था.फलतः जर्मनी और इंग्लैंड में वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्धा बढ़ गई.
इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने इंग्लैंड और जर्मनी की प्रतिस्पर्धा को और बढ़ावा दिया.
अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए जब पतनशील तुर्की साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से जर्मनी ने वर्लीन बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड फ्रांस और रूस ने इसका विरोध किया. इससे कटुता बढ़ी.