प्रथमगणस्य धातुद्रयम्।
give examples of this.
(don't answer if u don't know)
Answers
Answer:
PLZ MARK ME AS THE BRAINLIST
Explanation:
क्रिया के मूल रूप को धातु (Root) कहते हैं। विभिन्न काल तथा अवस्थाओं में, तीनों पुरुषों तथा तीनों वचनों में धातु के साथ तिङ् प्रत्ययों को जोड़ा जाता है। समस्त धातुओं को दस गणों (Classes) में बाँटा गया है तथा इन गणों के पृथक्-पृथक चिह्न (विकरण) होते हैं, जिनको तिङ् प्रत्यय से पूर्व धातु में लगाया जाता है। इन गणों के नाम तथा चिहन निम्नलिखित हैं –
लकार – विभिन्न कालों तथा अवस्थाओं को लकार कहा जाता है। संस्कृत में कुल ग्यारह लकार हात हैं जिनमें से पाँच लकार ही हमारे पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं।
(क) लट् लकार (वर्तमान काल, Present Tense) – भवति इत्यादि।
(ख) लङ् लकार (भूतकाल, Past Tense) – अभवत् इत्यादि।
(ग) लृट् लकार (भविष्यत् काल, Future Tense) – भविष्यति इत्यादि।
(घ) लोट् लकार (आज्ञादि, Imperative Mood) – भवतु इत्यादि।
(ङ) विधिलिङ् लकार (विध्यादि, Potential Mood) – भवेत् इत्यादि।
विधिलिङ् का प्रयोग नम्रतापूर्वक आदेश देने, कार्य कराने, सलाह देने, निमंत्रण देने, प्रेमपूर्वक आग्रह तथा सत्कारपूर्वक व्यापार, प्रश्न एवं प्रार्थना आदि अर्थों में होता है। यह ‘चाहिए’ अर्थ को भी प्रकट करता है।
तिङ् प्रत्यय (Tense Suffixes) धातुओं से लकारों के रूप बनाने के हेतु जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं उन्हें तिङ् प्रत्यय कहते हैं। तिङ् प्रत्यय लगने पर शब्दों की तिङन्त संज्ञा हो जाती है। तिप् से लेकर महिङ्त क तिङ प्रत्ययों की संख्या अठारह हैं। समस्त धातुओं को अर्थ की दृष्टि से प्रायः परस्मैपद तथा आत्मनेपद-इन दो भागों में बाँटा गया है। कुछ धातुएँ उभयपदी होती हैं। नौ प्रत्यय परस्मैपद के हैं तथा नौ आत्मनेपद के।
उभयपदी क्री, कृ, ह, ज्ञा, ग्रह, शक्; इनमें से केवल दो धातुओं के लट् तथा लृट् लकारों में ही धातु-रूप पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं।