History, asked by nagarpawan106, 3 months ago

प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होता है​

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Answered by sapnakumare27271
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Answer:

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और इसका सीधा सीधा मतलब है कि यहाँ का शासन भारत देश की जनता द्वारा चुना जाता है | जनता द्वारा देश हित में वोट किया जाता है और ऐसा देश के एक ऐसे व्यक्ति के चुनाव के लिए होता है जो भारत देश को वैश्विक स्तर पर प्रतिनिधित्व कर सके | ऐसे व्यक्ति को संविधान के द्वारा भारत देश का प्रधानमन्त्री घोषित किया गया है |भारत में सत्ता का निर्धारण संसद प्रणाली के रूप में होता है जिसे केंद्रीय स्तर पर सत्ता का विभाजन भी कहा जाता है क्योंकि चुना हुआ प्रतिनिधि इसी संसद में सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण करता है और अपने क्षेत्र के मुद्दों को अभिव्यक्ति के आधार पर संसद में उठाता है |आज हम देश के प्रधानमन्त्री के विषय में बहुत कुछ जानेगे, हम या हमारी देश की जनता किस प्रकार देश के प्रधानमन्त्री का चुनाव करती है | प्रधानमन्त्री पद हेतु क्या योग्यताये निर्धारित की गयी है और चुनने के बाद संविधान द्वारा देश के प्रधानमन्त्री को किस प्रकार कार्य व अधिकार दिए गए है | साथ ही यह भी जानेगे कि कैसे एक देश के प्रधानमन्त्री की नियुक्ति होती है और वह नियुक्ति कौन करता है |

Answered by adityaisraji
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भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री (सामान्य वर्तनी: प्रधानमंत्री) का पद भारतीय संघ के शासन प्रमुख का पद है। भारतीय संविधान के अनुसार, प्रधानमन्त्री केंद्र सरकार के मंत्रिपरिषद् का प्रमुख और राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का प्रमुख होता है और सरकार के कार्यों को लेकर संसद के प्रति जवाबदेह होता है। भारत की संसदीय राजनैतिक प्रणाली में राष्ट्रप्रमुख और शासनप्रमुख के पद को पूर्णतः विभक्त रखा गया है।

भारत गणराज्य के प्रधानमन्त्री
Prime Minister of India
प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ इण्डिया
Emblem of India.svg
भारत का संप्रतीक
Flag of India.svg
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
PM Modi Portrait(cropped).jpg
पदस्थ
नरेन्द्र मोदी
२६ मई २०१४ से
शैली
माननीय (औपचारिक)
महामहिम (राजनयिक)
सदस्य
केन्द्रीय मंत्रिमण्डल
नीति आयोग
संसद
उत्तरदाइत्व
भारतीय संसद
राष्ट्रपति
आवास
७, लोक कल्याण मार्ग, नई दिल्ली, भारत
अधिस्थान
प्रधानमन्त्री कार्यालय, साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली, भारत
नियुक्तिकर्ता
राष्ट्रपति
रीतिस्पद रूपतः लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने की क्षमता द्वारा
अवधि काल
राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत[1]
परंपरागत रूप से, लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने की क्षमता पर
लोकसभा की दीर्घतम कार्यावधि ५ वर्ष होती है, बशर्ते की कार्यकाल समापन के पूर्व ही सभा भंग न की जाए तो।
कायर्काल पर किसी भी प्रकार की समय-सीमा रेखकांकित नहीं की गयी है।
उद्घाटक धारक
जवाहरलाल नेहरू
गठन
15 अगस्त 1947 (73 वर्ष पहले)
वेतन
₹20 लाख (US$29,200) (वार्षिक, ₹9,60,000 (US$14,016) संसदीय वेतन समेत)
वेब्साइट
प्रधानमन्त्री कार्यालय
सैद्धांतिक रूप में संविधान भारत के राष्ट्रपति को देश का राष्ट्रप्रमुख घोषित करता है और सैद्धांतिक रूप में, शासनतंत्र की सारी शक्तियों को राष्ट्रपति में निहित करता है तथा संविधान यह भी निर्दिष्ट करता है कि राष्ट्रपति इन अधिकारों का प्रयोग अपने अधीनस्थ अधिकारियों की सलाह पर करेगा।[2] संविधान द्वारा राष्ट्रपति के सारे कार्यकारी अधिकारों के प्रयोग करने की शक्ति, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित, प्रधानमन्त्री को दी गयी है।[3] संविधान अपने भाग ५ के विभिन्न अनुच्छेदों में प्रधानमन्त्री पद के संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद ७४ में स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानमन्त्री की उपस्थिति को आवश्यक माना गया है। उसकी मृत्यु या पदत्याग की दशा मे समस्त परिषद को पद छोड़ना पड़ता है। वह स्वेच्छा से ही मंत्रीपरिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति मंत्रिगण की नियुक्ति उसकी सलाह से ही करते हैं। मंत्रियों के विभाग का निर्धारण भी वही करता है। कैबिनेट के कार्य का निर्धारण भी वही करता है। देश के प्रशासन को निर्देश भी वही देता है तथा सभी नीतिगत निर्णय भी वही लेता है। राष्ट्रपति तथा मंत्रिपरिषद के मध्य संपर्क सूत्र भी वही हैं। मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रवक्ता भी वही है। वह सत्तापक्ष के नाम से लड़ी जाने वाली संसदीय बहसों का नेतृत्व करता है। संसद मे मंत्रिपरिषद के पक्ष मे लड़ी जा रही किसी भी बहस मे वह भाग ले सकता है। मन्त्रीगण के मध्य समन्वय भी वही करता है। वह किसी भी मंत्रालय से कोई भी सूचना आवश्यकतानुसार मंगवा सकता है।

प्रधानमन्त्री, लोकसभा में बहुमत-धारी दल का नेता होता है, और उसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने पर होती है। इस पद पर किसी प्रकार की समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है परंतु एक व्यक्ति इस पद पर केवल तब तक रह सकता है जब तक लोकसभा में बहुमत उसके पक्ष में हो।

संविधान, विशेष रूप से, प्रधानमन्त्री को केंद्रीय मंत्रिमण्डल पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करता है। इस पद के पदाधिकारी को सरकारी तंत्र पर दी गयी अत्यधिक नियंत्रणात्मक शक्ति, प्रधानमन्त्री को भारतीय गणराज्य का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति बनाती है। विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या, सबसे बड़े लोकतंत्र और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य बलों समेत एक परमाणु-शस्त्र राज्य के नेता होने के कारण भारतीय प्रधानमन्त्री को विश्व के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है। वर्ष २०१० में फ़ोर्ब्स पत्रिका ने अपनी, विश्व के सबसे शक्तिशाली लोगों की, सूची में तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को १८वीं स्थान पर रखा था[4] तथा २०१२ और २०१३ में उन्हें क्रमशः १९वें और २८वें स्थान पर रखा था।[5][6][7] उनके उत्तराधिकारी, नरेंद्र मोदी को वर्ष २०१४ में १५वें स्थान पर तथा वर्ष २०१५ में विश्व का ९वाँ सबसे शक्तिशाली व्यक्ति नामित किया था।[8][9]

इस पद की स्थापना, वर्त्तमान कर्तव्यों और शक्तियों के साथ, २६ जनवरी १९४७ को, संविधान के प्रवर्तन के साथ हुई थी। उस समय से वर्त्तमान समय तक, इस पद पर कुल १५ पदाधिकारियों ने अपनी सेवा दी है। इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले पदाधिकारी जवाहरलाल नेहरू थे जबकि भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी हैं, जिन्हें 26 मई 2014 को इस पद पर नियुक्त किया गया था।
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