प्रवर्तन विधि के रूप में विज्ञापन की सीमाएं क्या हैं?
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"प्रवर्तन विधि के चलते हुये यदि विज्ञापन किया जाये तो इसमें कई सीमा सामने आतीं हैं जो निम्नलिखित हैं:
1. कम सशक्तिकरण: इसका स्वरूप गैर वैयक्तिक माना जाता है क्योंकि इसे देखने वाले व्यक्ति पर किसी प्रकार का कोई भी दबाव नहीं पड़ता है।
2. प्रति पोषणीय कमी – विज्ञापन के संदेश का मूल्यांकन बहुत कठिन होता है क्योंकि इसके प्रसारण पर कोई प्रति पोषणीय व्यवस्था मौजूद नहीं है।
3. लोच की कमी - विज्ञापन में संदेश देने के कुछ मानक होते हैं जिन्हें बदला या ग्राहक आवश्यकता के अनुरूप ढाला नहीं जा सकता।
4. कम प्रभाव – विगज्ञापन की संख्या वृद्धि की वजह से लक्षित व्यक्तियों को प्रभावित करना कठिन हो जाता है।"
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