Hindi, asked by lokeshpanche09, 5 months ago

'प्रयोजन मूलक हिन्दी की उपयोगिता' पर एक निबन्ध लिखिए।​

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Answered by Arpita1678
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here is your answer..

Explanation:

प्रयोजनमूलक हिन्दी के संदर्र्भ में ‘प्रयोजन’ शब्द के साथ ‘मूलक’ उपसर्ग लगने से प्रयोजनमूलक पद बना है। प्रयोजन से तात्पर्य है उद्देश्य अथवा प्रयुक्ति। ‘मूलक’ से तात्पर्य है आधारित। अत: प्रयोजनमूलक भाषा से तात्पर्य हुआ किसी विशिष्ट उद्देश्य के अनुसार प्रयुक्त भाषा। इस तरह प्रयोजनमूलक हिन्दी से तात्पर्य हिन्दी का वह प्रयुक्तिपरक विशिष्ट रूप या शैली है जो विषयगत तथा संदर्भगत प्रयोजन के लिए विशिष्ट भाषिक संरचना द्वारा प्रयुक्त की जाती है। विकास के प्रारम्भिक चरण में भाषा सामाजिक सम्पर्क का कार्य करती है। भाषा के इस रूप को संपर्क भाषा कहते हैं। संपर्क भाषा बहते नीर के समान है। प्रौढा की अवस्था में भाषा के वैचारिक संदर्भ परिपुष्ट होते हैं औैर भावात्मक अभिव्यक्ति कलात्मक हो जाती है। भाषा के इन रूपों को दो नामों से अभिहित किया जाता है। प्रयोजनमूलक और आनन्दमूलक। आनन्द विधायक भाषा साहित्यिक भाषा है। साहित्येतर मानक भाषा को ही प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं, जो विशेष भाषा समुदाय के समस्त जीवन-संदर्भो को निश्चित शब्दों और वाक्य संरचना के द्वारा अभिव्यक्त करने में सक्षम हो। भाषिक उपादेयता एवं विशिष्टिता का प्रतिपादन प्रयोजनमूलक भाषा से होता है।

प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप :

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। इसके बोलने व समझने वालों की संख्या के अनुसार विश्व में यह तीसरे क्रम की भाषा है। यानी कि हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। अत: स्वाभाविक ही है कि विश्व की चुनिंदा भाषाओं में से एक महत्वपूर्ण भाषा और भारत की अभिज्ञात राष्ट्रभाषा होने के कारण, देश के प्रशासनिक कार्यो में हिन्दी का व्यापक प्रयोग हो, राष्ट्रीयता की दृष्टि से ये आसार उपकारक ही है।प्रयोजनमूलक हिन्दी हिन्दी के भाषिक अध्ययन का ही एक और नाम है, एक और रूप है एक समय था जबकि सरकारी-अर्द्धसरकारी या सामान्यत: कार्यालयीन पत्राचार के लिए अंग्रेजी एक मात्र सक्षम भाषा समझी जाती थी। अंग्रेजी की उक्त महानता आज, सत्य से टूटी चेतना की तरह बेकार सिद्ध हो रही है चूंकि हिन्दी में अत्यन्त बढ़िया, स्तरीय तथा प्रभावक्षम पत्राचार संभव हुआ है। अत: जो लोग हिन्दी को अविकसित भाषा कहते थे, कभी खिचड़ी तो कभी क्लिष्ट भाषा कहते थे या अंग्रेजी की तुलना में हिन्दी को नीचा दिखाने की मूर्खता करते थे उन्हें तक लगने लगा है कि हिन्दी वाकई संसार की एक महान भाषा है, हरेक दृष्टि से परिपूर्ण एक सम्पन्न भाषा है।

राजभाषा के अतिरिक्त अन्य नये-नये व्यवहार क्षेत्रों में हिन्दी का प्रचार तथा प्रसार होता है, जैसे रेलवे प्लेटफार्म, मंदिर, धार्मिक संस्थानों आदि में। जीवन के कई प्रतिष्ठित क्षेत्रों में भी अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी का प्रयोग किया जाता है। विज्ञान औैर तकनीकी शिक्षा, कानून और न्यायालय, उच्चस्तरीय वाणिज्य और व्यापार आदि सभी क्षेत्रों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग होता है। व्यापारियों और व्यावसायियो के लिए भी हिन्दी का प्रयोग सुविधाजनक और आवश्यक बन गया है। भारतीय व्यापारी आज हिन्दी की उपेक्षा नहीं कर सकते, उनके कर्मचारी, ग्राहक सभी हिन्दी बोलते हैं। व्यवहार के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रयोजनों से हिन्दी का प्रयोग किया जाता है। बैंक मे हिन्दी के प्रयोग का प्रयोजन अलग है तो सरकारी कार्यालयो में हिन्दी के प्रयोग का प्रयोजन अलग है। हिन्दी के इस स्वरूप को ही प्रयोजनमूलक हिन्दी कहते हैं।

प्रयोजनमूलक रूप के कारण हिन्दी भाषा जीवित रही। आज तक साहित्यिक हिन्दी का ही अध्ययन किया जाता था, लेकिन साहित्यिक भाषा किसी भी भाषा को स्थित्यात्मक बनाती है और प्रयोजनमूलक भाषा उसको गत्यात्मक बनाती है। गतिमान जीवन में गत्यात्मक भाषा ही जीवित रहती है। प्रचलित रहती है। आज साहित्य तो संस्कृत में भी है, लेकिन उसका गत्यात्मक रूप-प्रयोजनमूलक रूप समाप्त हो गया है, अत: वह मृतवत हो गयी है। हिन्दी का प्रयोजनमूलक रूप अधिक शक्तिशाली तथा गत्यात्मक है। हिन्दी का प्रयोजनमूलक रूप न केवल उसके विकास में सहयोग देगा, बल्कि उसको जीवित रखने एवं लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।

इस प्रकार विभिन्न प्रयोजनों के लिए गठित समाज खंडों द्वारा किसी भाषा के ये विभिन्न रूप या परिवर्तन ही उस भाषा के प्रयोजनमूलक रूप हैं। अंग्रेजी शासन में यूरोपीय संपर्क से हमारा सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक ढांचा काफी बदला, धीरे-धीरे हमारे जीवन में नई उद्भावनाएं (जैसे पत्रकारिता, इंजीनियरिंग, बैंकीय) पनपी और तदनुकूल हिन्दी के नए प्रयोजनमूलक भाषिक रूप भी उभरे। स्वतंत्रता के बाद तो हिन्दी भाषा का प्रयोग क्षेत्र बहुत बढ़ा है और तदनुरूप उसके प्रयोजनमूलक रूप भी बढे हैं औैर बढ़ते जा रहे हैं। साहित्यिक विधाओं, संगीत, कपड़ा-बाजार, सट्टाबाजारों, चिकित्सा, व्यवसाय, खेतों, खलिहानों, विभिन्न शिल्पों और कलाओं, कला व खेलों के अखाड़ों, कोर्टो कचहरियों आदि में प्रयुक्त हिन्दी पूर्णत: एक नहीं है। रूप-रचना, वाक्य रचना, मुहावरों आदि की दृष्टि से उनमें कभी थोड़ा कभी अधिक अंतर स्पष्ट है और ये सभी हिन्दी के प्रयोजनमूलक परिवर्त या उपरूप है।

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