पूस की रात कहानी की कथावस्तु और उद्देश पर प्रकाश डालिए
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किसान से मजदूर
किसान से मजदूर बनने की प्रक्रिया यातनादायी होती है | किसानी में इज्जत होती है, मजदूरी में नहीं |पर, मुन्नी इतनी व्यथित है कि हल्कू को मजदूर बनने के लिए प्रेरित करती है | कारण कि मजदूरी में सुख से एक रोटी तो खाने को मिलेगी | साथ ही किसी की धौंस भी नहीं रहेगी |
ऐसा नहीं है कि हल्कू खेती के साथ मजदूरी नहीं करता था | अगर हल्कू मजदूरी नहीं कर रहा होता तो मुन्नी को यह नहीं कहना पड़ता कि मजूरी करके लाओ, वह भी खेती में झोंक दो | इससे जाहिर होता है कि हल्कू किसानी के साथ-साथ मजदूरी करता है | लिहाजा, उसकी इज्जत है | चूँकि मजदूरी से अर्जित पैसा भी खेती में लग जाता है, इसलिए मुन्नी चाहती है कि खेती पूर्णतया छोड़ दी जाए और मजदूरी ही की जाए |
सोचने की बात है कि हल्कू जैसे किसान खेती करना छोड़ क्यों नहीं देते ? मुन्नी की बात पर हल्कू कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता ? प्रसंगवश, याद करें ‘गोदान’ के होरी को | होरी भी आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद खेती करना नहीं छोड़ता | मजदूरी के साथ-साथ खेती भी करता है | मजदूरी पेट भरने के लिए और खेती समाज में प्रतिष्ठा के लिए | किसानी के साथ मरजाद जुड़ा हुआ है | जिस देश-काल की कहानी ‘पूस की रात’ है, वहाँ कहा जाता था–
“उत्तम कृषि, मध्यम बान
अधम चाकरी, भीख निदान |”
आशय यह कि खेती करना सबसे उत्तम होता है | व्यवसाय मध्यम श्रेणी में आता है | नौकरी करनेवालों की श्रेणी सबसे नीचे है | भीख माँगकर गुजारा करना किसी तरह जीवन काटना है |
है |
यही वजह है कि मुन्नी की बात का हल्कू कोई जवाब नहीं देता | मुन्नी की बात में कड़वी सच्चाई थी, बावजूद इसके हल्कू कुछ बोल नहीं पाता है ; तो इसका सबब मरजाद ही है |
मुन्नी से प्राप्त तीन रुपये, जब देने के लिए हल्कू निकला, इसको बताते हुए प्रेमचंद ने लिखा है, उससे हल्कू की यातना का अहसास किया जा सकता है | हल्कू इस तरह बाहर चला मानो अपना हदय निकालकर देने जा रहा हो |’ हल्कू के जीवन में इस तीन रुपये का यह स्थान था ; मानो वह उसका हृदय हो | कारण कि आगामी हाड़तोड़ ठंड से बचने के लिए ‘उसने मजूरी से एक-एक पैसा काट-कपटकर तीन रुपये कंबल के लिए जमा किये थे | वह आज निकले जा रहे थे | तीन रुपये लेकर जब हल्कू निकला तो एक-एक पग (कदम) के साथ उसका मस्तक अपनी दीनता के मार से दबा जा रहा था |’ हल्कू को हर कदम के साथ, अपनी गरीबी, बेचारगी का अहसास होता रहा | इस बढते बोझ के हर कदम के साथ उसका माथा दबा जा रहा था, दीनता के मार से | दीनता से अधिक मार्मिक दीनता का अहसास होता है | इसके साथ ही काबिलेगौर है कि दीनता या किसी भी तरह की यातना का अहसास भावी मुक्ति का पहला कदम होता है | यह अहसास ही चेतना का प्राथमिक सबूत है | इस चेतना के बगैर व्यक्ति शोषण के दंश को नहीं समझ पाता | हल्कू को, ‘दीनता के मार’ की समझ में जो संकेत निहित है, कहानी के आखिर में घटित होता है |
‘पूस की रात’ कहानी को प्रेमचंद ने चार हिस्सों में बाँटा है | बेचारगी के इस बढते बोझ के साथ इस कहानी का पहला हिस्सा खत्म होता है |
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इसी तरह प्रेमचंद की कहानी “पूस की रात” किसान की स्थिति का प्रामाणिक दस्तावेज है। इसमें उसकी ऋण ग्रस्तता, मौसम की मार, कर्ज चुकाने की असमर्थता, किसान का परिवेश व पशुधन के साथ रिश्ता, कृषि से हताशा और ऊब, महिलाओं का ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चलाने में केंद्रीय योगदान समझा जा सकता है।
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