'पूस की रात' कहानी का सारांश अपने शबदो मे लिखिए
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ऐसी खेती से बाज आए” मुन्नी ने यह बात अपने पति हल्कू से तब कही थी, जब वह तगादे के लिए आए सहना को पैसे देने के लिए पत्नी से तीन रुपए मांग रहा था। मुन्नी को उन पैसों से कंबल खरीदने थे ताकि “पूस की रात” में ठंड से बचा जा सके। ... उस दौर में कृषि और किसानों की स्थिति को जानने समझने के लिए यह एक दुर्लभ कहानी है।
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'पूस की रात' कहानी का सारांश अपने शबदो मे लिखिए
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कहानी में कृषक जीवन की दुर्बलता और सबलता की झाँकी दिखाना है । कृषक याने किसान एक एक दृष्टि से सबल होता है । वह कडी मेहनत करता है । पैसा-पैसा काँट-छाँटकर बचा रखता है । फिर हर प्रकार के कष्ट सहन करता है । जाडे में ठिठुरता है,जमिंदार की गाली सुनता है,फिर भी काम करता जाता है । यही उसकी सबलता है । वह दुर्बल है, क्यों कि उसमें जमिंदार के अन्याय के विरुद्ध खडा होने की हिम्मत नहीं है । परिस्थितियाँ इसके लिए जिम्मेदार हैं । हल्कू ने अपनी मेहनत की कमाई जमिंदार को दी और खुद पूस की रात में ठण्ड से ठिठुरने लगा । यही उसकी कमजोरी है । परिस्थितियों की दबाव के कारण नील गायों से अपनी फसल की रक्षा भी न कर सका । अतः कहानी कार ने किसान की विवशता के लिए जिम्मेदारी शक्तियों के प्रति व्यंग्य किया है ।