पुस्तक की आत्मकथा....
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मैं पुस्तक बोल रहा हुं.मी बहुतछोटे बच्चे अपनी जिंदगी में ज्ञान प्राप्त करने की शुरुआत मुझसे ही करते हैं और समय के साथ साथ वे ज्ञानी होते जाते हैं। बाद में यही बच्चे बड़े होकर अपने राष्ट्र की प्रगति में भागीदार बनते हैं।
मुझे सिर्फ छोटे बच्चे ही नहीं बल्कि सभी उम्र के लोग पढ़ते हैं क्योंकि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। काफी लोग मुझे सिर्फ शौक के कारण पढ़ते हैं ताकि मैं अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त कर स
इतना ही नहीं, कुछ लोग मुझे सिर्फ कहानी और कविता पढ़ने के लिए ही खरीदते हैं ताकि मैं उनका मनोरंजन कर सकूं। इन कहानी और कविताओं से भी उन्हें कुछ ना कुछ शिक्षा मिलती है और उनका नैतिक ज्ञान बनाने में भी मदद करती हैं।
प्राचीन काल की बात करें तो मेरा उपयोग ज्ञान को संरक्षित रखने के लिए किया जाता था। ज्ञान की सारी चीजें मुझ में लिख दी जाती थी और उसे अच्छे से संभाल कर रखा जाता था। ज्ञान को संरक्षित करने का एक फायदा यह भी था कि उसे कोई व्यक्ति कुछ समय के बाद यदि भूल भी गया हो तो वह ज्ञान को दोबारा प्राप्त कर सकें। इसके कारण ही ज्ञान कभी भी नष्ट नहीं होता था और हमेशा मनुष्य के पास रहता था।
आज भी आप कई पुस्तक प्राचीन काल की देखते होंगे जिसमें ज्ञान की बहुत सारी बातें ऋषि-मुनियों द्वारा लिखी गई थी। यदि उस वक्त इन ज्ञान की बातों को संरक्षित ना किया जाता तो शायद आज हमें उनके द्वारा दिया गया ज्ञान ना प्राप्त होता.
वर्तमान युग में भी मेरा उपयोग ज्ञान को अर्जित करने के लिए ही होता है मगर आज आधुनिक तरीकों से ज्ञान को संभाल कर रखा जा सकता है। इन आधुनिक तरीकों से कई लोग आज ज्ञान प्राप्त करते हैं मगर अधिकतर लोग आज भी मुझमें से ज्ञान अर्जित करना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें किसी आधुनिक यंत्र जैसे मोबाइल या कंप्यूटर की मदद से पढ़ने की बजाय सीधा मुझसे पढ़ना ज्यादा पसंद है।