Hindi, asked by kshitij97, 10 months ago

पुस्तकालय का विद्यार्थी जीवन में महत्व ​

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Answered by bharatbarole
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Har manushya jab tak jivit hai tab tak vo Vidyarthi rehta hai aur vidyarthi jeevan Mein sabse Jyada mehtvapurn Pustake hoti hai Jaise Sharir ka Khadya yog hota hai Waise Hi Mann Ka Khadya Pustak Hota Hai aur Phir Ye zaroori nahi hai ki hum kaun si Kitab padhte Hain Hum pustakalaya Mein Apni Manpasand Pustake, newspaper, magazine Aadi cheese pad sakte hain pustake hi Hamare sache dost hoti hai Har Mod Par Hamari sahayata Karti he aar esi Liye pustako ka ghar Hona Hamare liye Jaroori hai Yahi Vidyarthi Jeevan Mein pustako ka mahatva hai
Answered by Anonymous
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Answer:

विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ है, क्योंकि समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर करती है? अतः विद्यार्थी जीवन पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को स्वर्णिम काले है। इसी काल में भावी जीवन की तैयारी की जाती है तथा शक्तियों का विकास किया जाता है। इस काल में बालक के मस्तिष्क रूपी स्लेट पर कुछ अंकित हो जाता है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।

विद्यार्थी जीवन की महत्ता को जानते हुए प्राचीन काल में विद्यार्थी को घरों से दूर गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था, गुरु के कठोर अनुशासन को उसे पालन करना पड़ता था। गुरु अपने शिष्यों को तपा-तपाकर स्वर्ण बना देता था।

लेकिन आधुनिक युग में विद्यार्थी विद्यालयों में विद्याध्ययन करता है। आज गुरु ओं के कठोर अनुशासन का अभाव है। आज शिक्षा का संबंध धन से जोड़ा जाता है। विद्यार्थी यह समझता है कि वह धन देकर विद्या प्राप्त कर रहा है। उसमें गुरुओं के प्रति सम्मान के भाव की कमी पाई जाती है। शिक्षा में नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इन्हीं कारणों से आज विद्यार्थी अनुशासनहीन पश्चिमी सभ्यता का अनुयायी तथा भारतीय संस्कृति से दूर हो गया है।

आदर्श विद्यार्थी के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है

काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।

अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन पंचलक्षणं ॥

अर्थात विद्यार्थी को कौए के समान चेष्ठावान, बगुले के समान एकाग्रचित्त, कुत्ते के समान कम सोने वाला, कम खाने वाला तथा विद्याध्ययन के लिए त्याग करने वाला होना चाहिए। दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक विद्यार्थी में इन गुणों का अभाव पाया जाता है। विद्यार्थी ही देश के भविष्य होते हैं। इसलिए विद्यार्थियों में विनयशीलता, संयम आज्ञाकारिता जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।

आज के विद्यार्थी वर्ग के पतन के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों को भी कर्तव्य है कि वे भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हों।

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