पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मजदूरों की झोपड़ी का मज़ाक उड़ाती हुई
अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं, और
उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह
भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज्म आदि का जन्म हुआ।
pls tell me the meaning of this paragraph in hindi, its from sparsh part - 1 chapter "Dharm ki aad" (9th grade).... tmrw is my finals pls answer it soon.
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“पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मजदूरों की झोपड़ी का मज़ाक उड़ाती हुई अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं, और उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज्म आदि का जन्म हुआ।”
भावार्थ ► यह गद्यांश गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा लिखे गए ‘धर्म की आड़’ नामक लेख से लिया गया है। इस लेख में गणेश शंकर विद्यार्थी ने धर्म की आड़ में खेले जा रहे खेल के बारे में विवेचन किया है। इस गद्यांश में वे कहते हैं कि दुनिया के जो भी विकसित देश हैं, उनमें जो भी समृद्धि है, बड़े-बड़े भवन हैं, वह गरीबों का शोषण करके ही बनाए गए हैं। उन भवनों में गरीबों का श्रम लगा है, लेकिन उससे गरीबों को कोई लाभ नहीं। वह इतने बड़े बड़े भवनों को बनाने में अपना योगदान देने के बावजूद भी अभावों भरी जिंदगी ही जीते रहे हैं। जबकि गरीबों का शोषण कर इन भवनों के स्वामी लोग और अधिक से अधिक समृद्ध और संपन्न होते रहे हैं। उनके जीवन का यही तरीका रहा है कि वह अधिक से अधिक गरीबों का शोषण करें और अधिक से अधिक समृद्ध हों। अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण की इसी परिपाटी के चलते ही दुनिया में समाजवाद का जन्म हुआ। दुनिया के जितने भी सामाजिक क्रांति और आंदोलन हुये हैं, वे अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण के विरोध के परिणामस्वरूप ही उत्पन्न हुये हैं।
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Answer:
“पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मजदूरों की झोपड़ी का मज़ाक उड़ाती हुई अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं, और उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज्म आदि का जन्म हुआ।”
Explanation:
भावार्थ ► यह गद्यांश गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा लिखे गए ‘धर्म की आड़’ नामक लेख से लिया गया है। इस लेख में गणेश शंकर विद्यार्थी ने धर्म की आड़ में खेले जा रहे खेल के बारे में विवेचन किया है। इस गद्यांश में वे कहते हैं कि दुनिया के जो भी विकसित देश हैं, उनमें जो भी समृद्धि है, बड़े-बड़े भवन हैं, वह गरीबों का शोषण करके ही बनाए गए हैं। उन भवनों में गरीबों का श्रम लगा है, लेकिन उससे गरीबों को कोई लाभ नहीं। वह इतने बड़े बड़े भवनों को बनाने में अपना योगदान देने के बावजूद भी अभावों भरी जिंदगी ही जीते रहे हैं। जबकि गरीबों का शोषण कर इन भवनों के स्वामी लोग और अधिक से अधिक समृद्ध और संपन्न होते रहे हैं। उनके जीवन का यही तरीका रहा है कि वह अधिक से अधिक गरीबों का शोषण करें और अधिक से अधिक समृद्ध हों। अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण की इसी परिपाटी के चलते ही दुनिया में समाजवाद का जन्म हुआ। दुनिया के जितने भी सामाजिक क्रांति और आंदोलन हुये हैं, वे अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण के विरोध के परिणामस्वरूप ही उत्पन्न हुये हैं।