पोशाक के माध्यम से हर व्यक्ति को दूसरों से प्रथम परिचय होता है l
इस कथन को भिन्न - भिन्न चित्रों के माध्यम से स्पष्ट कीधिए |
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मानव की भौतिक उपस्थिति के अन्य पहलुओं की तरह वस्त्रों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। वस्त्रों का व्यक्ति के व्यक्तित्व बनाने में अहम भूमिका होती है। वेशभूषा प्राचीन काल से ही समाज में विशेष भूमिका अदा करती आ रही है। जिस प्रकार राजा और उसके दरबारियों की वेशभूषा विशेष होती थी। जो लोग साधारण थे उनकी आभा साधारण होती थी। इसी प्रकार आम शिक्षा के क्षेत्र में अलग अलग स्कूलों की अलग अलग वेशभूषा होती है। आमतौर पर स्कूलों में शिक्षकों व छात्रों के लिए कठोर वेशभूषा की संहिता होती है। इससे सभी व गरीब में कोई फर्क नहीं दिखाई देता।
जीवन का अहम हिस्सा है पोशाक:
पोशाक हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमारे बारे में नहीं बल्कि दूसरों के बारे में भी बताती है। पोशाक किसी की एक पहचान होती है। पोशाक किसी की एक पहचान होती है। पोशाक के माध्यम से हमें पता चलता है कि विद्यार्थी किस स्कूल है। पोशाक चयनित करने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। वह स्कूल की वर्दी सभी वर्ग को देखकर तय करता है। शिक्षा, अनुशासन और शिष्टाचार के साथ वर्दी का आइकन समाज की दशा और दिशा बदलने में सहायक होती हैं। हमें समाज के प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते नई पीढ़ी को सभ्य समाज में आगे लाना है तो उसके लिए हमें ¨चतन करने की जरूरत है। एक सैनिक अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी उस वर्दी को नहीं छोड़ता जिसमें उसने सेवाएं दीं। विद्यालयों और कारपोरेट क्षेत्रों में वर्दी की अनिवार्यता समानता का आभास कराती है। उसी प्रकार सामान्य दिनचर्या में भी वर्दी का आइकन बरकरार रखना चाहिए।
आत्मविश्वास बढ़ाने वाला होना चाहिए पहनावा:
अच्छे पोशाक पहनने से समाज में हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है क्योंकि इससे हमारे काम व सोच पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हम अच्छी सोच और आत्मविश्वास के कारण ही ¨जदगी के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। आजकल हमारा समाज हमारे बच्चों के लिए प्रतिस्पर्धा का विषय बन गया है। ऐसा लगता है कि उनकी पोशाक प्रतिदिन उनपर क्या प्रभाव डाल रही है।
फैशन से बदल रहा समाज:
समाज में विशेषकर बच्चों में पहनावे को लेकर काफी बदलाव आ रहा है। टीवी सीरियलों और फिल्मों के साथ खेलों में प्रसिद्ध शख्सियतों की तरह दिखना चाहता है। अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए पारिवारिक और सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन किए बिना ही जिद कर बैठते हैं। कलाकारों और खिलाड़ियों के जैसा दिखने के चक्कर में पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी ख्याल नहीं रखते। ऐसे में हमें विशेषकर माता पिता, शिक्षक और समाज के लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है। आज के बच्चे कम कीमती कपड़ों को छोड़कर फैशन को देखते हुए महंगे कपड़ों को ज्यादा महत्व देते हैं। बच्चों में इस तरह की भावनाओं को सुधारने के लिए माता पिता, शिक्षकगण और समाज के नागरिकों को अहम भूमिका निभाना होगा।
अभिभावकों को निभानी होगी जिम्मेदारियां:
बच्चों और युवा वर्ग में दूसरों से अच्छा और अपनी पसंद के कलाकार, खिलाड़ियों जैसे दिखने की चाह ज्यादा रहती है। टीवी और फिल्मों में दिखने वाले कलाकारों के पहनावे को देखकर आकर्षित होना स्वाभाविक है। सोशल साइट्स में बढ़ते फैशन के दौर में अभिभावकों को विशेष सावधानी सावधानी बरतने की जरूरत है। बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ पहनावे के प्रति भी जागरूक करने की जरूरत है। समाज में घटित हो रही आपराधिक घटनाओं के लिए कुछ हद तक हमारे बच्चों का पहनावा भी एक कारक बन रहा है। सभ्य समाज में सभ्य पोशाक भी व्यक्ति के व्यक्तित्व प्रभाव डालता है। विद्यार्थी जीवन में अध्यापक और माता पिता भगवान का रूप होता है। स्कूल पोशाक समानता का सूत्र माना जाता है। स्कूल पोशाक से न तो गरीब अमीर का भेद होता है और न ही विद्यार्थियों में हीन भावना आती है। सभ्य पहनावा न केवल एकता का प्रतीक माना जाता है बल्कि व्यक्ति के व्यक्तित्व से दूसरों को भी प्रभावित करता है।
शिक्षक बनें आदर्श:
बच्चों को सभ्य वर्दी के लिए प्रेरित करना है तो शिक्षकों को भी आदर्श बनना होगा। एक शिक्षक की पहचान उसके बौद्धिक ज्ञान के साथ उसका व्यक्तित्व के साथ पहनावे के कारण समाज में अलग कराती है। शिक्षकों के पहनावे की बच्चे घर और साथियों के बीच चर्चा करते हैं। अच्छे व्यक्तित्व वाला शिक्षक होगा तो बच्चे न केवल प्रभावित होंगे बल्कि उनके जैसा बनने के लिए अनुसरण भी करेंगे। छोटे बच्चों में यह परंपरा अधिक रहती है। एक शिक्षाविद होने के नाते समाज में उसका व्यक्तित्व आदर्श बनता है। सामाजिक प्राणी होने के नाते हमारा पहनावा हमारी संस्कृति को दर्शाता है। विविधताओं में एकता और अनेकता में एकता का संदेश देने वाले इस देश की पहचान हमारा पहनावा है। अलग अलग देशों के पहनावे अलग हैं। हमारी संस्कृति, वेशभूषा, त्यौहार में पहनावे अलग अलग हैं। हमारे पहनावे की चर्चा विदेशों में होती है। पश्चिमी संस्कृति का पहनावा हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाता। इसमें सभ्यता का अभाव देखने को मिलता है। हमें सभ्य समाज के निर्माण के लिए हमारी युवा पीढ़ी को जागरूक और आदर्श उदाहरण बनकर प्रेरित करना होगा।