पोशाक के महत्व पर एक लेख
Answers
मानव की भौतिक उपस्थिति के अन्य पहलुओं की तरह वस्त्रों का सामाजिक महत्व है।
वेशभूषा संहिता में निहित नियम या संकेत होते हैं जो व्यक्ति के कपड़ों और उन्हें पहनने के तरीके से दिए जा रहे संदेश को इंगित करते हैं।
यह संदेश व्यक्ति के लिंग, आय, व्यवसाय और सामाजिक वर्ग, राजनैतिक और जातीय संबद्धता, आराम के प्रति उसके रवैये और दृष्टिकोण, फ़ैशन, परंपराओं, लिंग अभिव्यक्ति, वैवाहिक स्थिति, यौन उपलब्धता और यौन अभिविन्यास इत्यादि को संप्रेषित कर सकता है। कपड़े निजी या सांस्कृतिक पहचान का बयान या दावा, सामाजिक समूह के मानकों की स्थापना, अनुरक्षण या अवहेलना और आराम और कार्यक्षमता की सराहना सहित अन्य सामाजिक संदेश भी संसूचित कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, महंगे कपड़े पहनने से धन के होने का, धन की छवि का या गुणवत्ता वाले कपड़ों की सुलभता का पता चलता है।
सभी कारक विपरीत तौर पर सस्ते कपड़े पहनने और इसी तरह की वस्तुओं पर लागू होते हैं। प्रेक्षक परिणामी, महंगे कपड़े देखता है लेकिन उस सीमा का गलत अनुमान लगा सकता है जिस तक प्रेक्षण अधीन व्यक्ति पर ये कारक लागू होते हैं। (Cf. विशिष्ट खपत). कपड़े सामाजिक संदेश दे सकते हैं, भले ही कोई इरादा न हो.
अगर प्राप्तकर्ता के कोड की व्याख्या प्रेषक के कोड से अलग हो तो गलत अर्थ निकलता है।
हर संस्कृति में एक सामाजिक संदेश व्यक्त करने के लिए मौजूदा फैशन सचेत निर्माण, संयोजन और कपड़े पहनने के ढंग को नियंत्रित करता है।
फैशन के परिवर्तन की दर अलग होती है इसलिए महीने या दिनों में कपड़े पहनने और उसके साज-सज्जा के सामान की शैली संशोधित होती है, विशेष रूप से छोटे सामाजिक समूहों में या संचार मीडिया से प्रभावित आधुनिक समाज में. अधिक समय, धन और प्रभाव के लिए प्रयास की आवश्यकता वाले और अधिक व्यापक परिवर्तन कई पीढ़ियों में हो सकते हैं। जब फैशन बदलता है तो कपड़ों में परिवर्तन से व्यक्त संदेश भी बदल जाता है।
मानव जीवन में भोजन के बाद यदि किसी वस्तु का महत्व है तो वह वस्त्र वस्त्र जहां हमारे शरीर को धूप शीत से रक्षा करता है वहां मानव सभ्यता की दृष्टि से भी आवश्यक है आज का युग फैशन का युग है वस्त्रों को नित्य नए स्टाइल से पहनना फैशन कहलाता है फैशन के इस दौर में बच्चे बड़े बूढ़े और महिलाएं कोई भी पीछे नहीं है परंतु आज का युवा फैशन की इस दौड़ में सबको पछाड़ रहा है फैशन के प्रति उनकी दीवानगी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वह भले ही खाने-पीने में कटौती कर ले लेकिन फैशन की दौड़ में पीछे रह ना उन्हें कतई गवारा नहीं मित्रों से बस मांग कर कहना भी उन्हें मंजूर है लेकिन स्वयं को रोज वादी या पिछड़ा कहलाना उन्हें मंजूर नहीं देखा जाए तो उनकी यह सोच निरर्थक भी नहीं है क्योंकि यह दुनिया पहनावे को पहले देखती है और व्यक्ति के गुणों को बाद में । फैशन शब्द से तो आप सभी परिचित हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि मनुष्य ने वस्त्रों को कब और कैसे अपने जीवन में स्थान दिया पाषाण युग में जब मनुष्य वस्त्र से परिचित नहीं था तब वह व्यक्तियों की छाल तथा बड़े-बड़े पत्तों से अपने शरीर को ढकता था जब मनुष्य ने शिकार करना सिखा दो जंतुओं की खालों को अपने शरीर पर लपेटना शुरू कर दिया जब मनुष्य ने कृषि के बारे में जाना हो तो उसने एक जगह पर रहना शुरू कर दिया उसने अपनी प्रतिदिन की आवश्यक वस्तु का निर्माण करना प्रारंभ किया पेड़ों की पत्नी टहनियों और घास फूस से उन्हें चटाई या दलिया और टोकरिया बनाना सीखा इसी दौरान उनने जंतुओं को पालना भी सिखा और उनसे परिचित हुआ। उस समय उसने जंतुओं के बालों उन और पेड़ों की लताओं को आपस में गूंथकर वस्त्र तैयार किए । वस्त्रों को केवल फैशन के अनुरूप ही नहीं वरन मौसम को भी ध्यान में रखकर तैयार किया और पहनना जाता था गर्मियों में जहां सूती और हल्के वस्त्र पहने जाते हैं वहीं सर्दियों में गर्म व ऊनी वस्त्र पहने जाते हैं । ऊन हमें भेड़ बकरी या खाली जंतुओं से मिलती है । इसी प्रकार अलग अलग वस्त्र अलग अलग तरह से मिलते हैं मनुष्य फैशन की दौड़ में आगे रहना चाहता है तो रहे परंतु उसे ऐसे वस्त्र को नहीं पहनना चाहिए जो जीवो की मृत्यु का कारण रहे हो ।लेदर कोट जैकेट दस्ताने आदि कुछ ऐसे उत्पाद है जो जानवरों को मारकर उनकी खाल से बनाए जाते है। सलाह : जीवो की खालों से बने वस्त्र व अन्य वस्तुओं का प्रयोग ना करें