पाश्यात सभ्यता का प्रभाव निबंध 200 शब्द
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संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है।
संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मैं बचपन से दो प्रकार की संस्कृतियों के बारे में सुनती आ रही हूँ। भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति या अंग्रेजी संस्कृति । हमारे भारत देश की संस्कृति को भारतीय अथवा पूर्वी संस्कृति के नाम से जाना जाता है और यूरोप, अमरीका आदि देशों की संस्कृति को पाश्चात्य अथवा पश्चिमी संस्कृति के नाम से जाना जाता है। पाश्चात्य अथवा पश्चिमी संस्कृति को हमेशा से बुरा बोला। मैं भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी हूँ। इसलिए मेरी समस्त क्रियाएँ और व्यवहार भारतीय संस्कृति का पर्याय है। अभी कुछ दिनों के लिए मैंने यूरोपीय यात्रा की। 10 दिन मैंने जर्मनी और पेरिस में बिताए। मैंने हमेशा से सुना है कि पूर्वी संस्कृति हमारी भारतीय संस्कृति कहलाती है जिसमें सदाचार, त्याग, संयम, धर्म, सामाजिक परंपराएँ, रीति-रिवाज़ आदि हैं। आज तक जब भी भारतीय संस्कृति में कुछ भी संस्कृति के प्रति अपवाद रहा है तो पाश्चात्य संस्कृति को ही दोष दिया जाता रहा है। परंतु आज जब मैंने खुद भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति दोनों का अनुभव लिया तो यही अहसास किया कि ये एकदम गलत है कि भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव है। मैंने कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निकाले हैं जिनमें देखा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का कोई भी दुष्प्रभाव व्यक्त नहीं होता है। पाश्चात्य संस्कृति के सभी सकारात्मक पहलू हैं। अगर उन्हें अपनाया जाए तो हमारा भारत देश और उसकी भारतीय संस्कृति भी काफी विकसित होगी। पाश्चात्य संस्कृति के विरुद्ध सोच रखने वाले लोगों को ये सकारात्मक पहलुओं से दृष्टिपात कराना बहुत आवश्यक है:
1. पहनावा - सबसे पहले अगर हम पहनावे की बात करें तो जहाँ भारतीय संस्कृति का पहनावा सूट, साड़ी, कुर्ता-पाजामा आदि है तो वहीं पाश्चात्य संस्कृति का पहनावा पैंट-शर्ट, स्कर्ट-टॉप आदि है। मैंने हमेशा देखा है कि जब अंग्रेज़ लोग भारत में आते हैं तो यहाँ के पहनावे की ओर आकर्षित होते हैं। तो स्वभावतः जब कोई भारतीय विदेश जाता है तो वह भी वहाँ के पहनावे की ओर आकर्षित होता है लेकिन साथ-ही-साथ उस पहनावे को अपना लेता है। तो इसमें गलती किसकी है??? यकीनन इसमें गलती उस भारतीय की है जो अपने पहनावे को छोड़कर दूसरे देश के पहनावे को अपना रहा है। ये उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है जो अपने पहनावे को छोड़कर दूसरे देश के पहनावे को अपना रहा है। इसमें कहीं भी पाश्चात्य संस्कृति का कोई दोष नहीं है।
3. सामाजिक-स्थिति - एक समय था जब हमारे युवाओं के आदर्श, सिद्धांत, विचार, चिंतन और व्यवहार सब कुछ भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे हुए होते थे। वे स्वयं ही अपने संस्कृति के संरक्षक थे, परंतु आज उपभोक्तावादी पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध से भ्रमित युवा वर्ग को भारतीय संस्कृति के अनुगमन में पिछड़ेपन का एहसास होने लगा है। जिस युवा पीढ़ी के उपर देश के भविष्य की जिम्मेदारी है , जिसकी उर्जा से रचनात्मक कार्य सृजन होना चाहिए, उसकी पसंद में नकारात्मक दृष्टिकोण हावी हो चुका है। संगीत हो या सौंदर्य, प्रेरणास्त्रोत की बात हो या राजनीति का क्षेत्र या फिर स्टेटस सिंबल की पहचान सभी क्षेत्रों में युवाओं की पाश्चात्य संस्कृति में ढली नकारात्मक सोच स्पष्ट परिलछित होने लगी है। आज महानगरों की सड़कों पर तेज दौड़ती कारों का सर्वेक्षण करे तो पता लगेगा कि हर दूसरी कार में तेज धुनों पर जो संगीत बज रहा है वो पॉप संगीत है। युवा वर्ग के लिए ऐसी धुन बजाना दुनिया के साथ चलने की निशानी बन गया है। युवा वर्ग के अनुसार जिंदगी में तेजी लानी हो या कुछ ठीक करना हो तो गो इन स्पीड एवं पॉप संगीत सुनना तेजी लाने में सहायक है। हमें सांस्कृतिक विरासत में मिले शास्त्रीय संगीत व लोक संगीत के स्थान पर युवा पीढ़ी ने पॉप संगीत को स्थापित करने का फैसला कर लिया है। आज विदेशी संगीत चैनल युवाओं की पहली पसंद बनी हुई है। इन संगीत चैनलों के ज्यादा श्रोता 15 से 34 वर्ष के युवा वर्ग हैं। आज युवा वर्ग इन चैनलों को देखकर अपने आप को मॉडर्न और ऊँचे ख्यालों वाला समझ कर इठला रहा है। इससे ये एहसास हो रहा है कि आज के युवा कितने भ्रमित हैं अपने संस्कृति को लेकर और उनका झुकाव पाश्चात्य संस्कृति की ओर ज्यादा है। ये भारतीय संस्कृति के लिए बहुत दुख: की बात है। आज युवाओं के लिए सौंदर्य का मापदण्ड ही बदल गया है। विश्व में आज सौंदर्य प्रतियोगिता कराई जा रही है, जिससे सौंदर्य अब व्यवासाय बन गया है। आज लड़कियाँ सुन्दर दिख कर लाभ कमाने की अपेक्षा लिए ऐन -केन प्रकरण कर रही है। जो दया, क्षमा, ममता ,त्याग की मूर्ति कहलाती थी उनकी परिभाषा ही बदल गई है। आज लड़कियां ऐसे ऐसे पहनावा पहन रही हैं जो हमारे यहाँ अनुचित माना जाता है। आज युवा वर्ग अपने को पाश्चात्य संस्कृति मे ढालने मात्र को ही अपना विकास समझते हैं। आज युवाओं के आतंरिक मूल्य और सिद्धांत भी बदल गये हैं। आज उनका उददेश्य मात्र पैसा कमाना है। उनकी नजर में सफलता की एक ही मात्र परिभाषा है और वो है दौलत और शोहरत । चाहे वो किसी भी क्षेत्र में हो । इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं। संपन्नता दिखाकर हावी हो जाने का ये प्रचलन युवाओं को सबसे अलग एवं श्रेष्ठ दिखाने की चाहत के प्रतीक लगते हैं।