पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
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पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
इस कविता के लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है
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पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
इस कविता के लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है
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