Hindi, asked by 9166653651, 4 months ago

पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।​

Answers

Answered by anujsharma44181
6

Answer:

पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,

अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको

हैं मेरे वे जहाँ अनंत-

अभी न होगा मेरा अंत।

इस कविता के लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है

Answered by MasterBrainHacker
2

Answer:

पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,

अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको

हैं मेरे वे जहाँ अनंत-

अभी न होगा मेरा अंत।

इस कविता के लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है

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