Hindi, asked by jangraamit23, 7 months ago


पंत जी की कीर्ति का आधार स्तम्भ काव्य कौन-सा है?

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Answered by bhatiamona
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पंत जी की कीर्ति का आधार स्तम्भ काव्य कौन-सा है?

प्रसिद्ध साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत की कीर्ति के आधार स्तंभ उनकी काव्यगत विशेषताएं रही हैं, जिसमें उनके काव्य का कला पक्ष उजागर होता है। उनके साहित्य की विशेषताएं प्राकृतिक सौंदर्य रही हैं। उन्होंने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ मानवीय सौंदर्य का काफी कुशल-चित्रण किया है। वह छायावादी दौर के कवि रहे हैं, जहाँ पर उन्होंने रोमानी दृष्टि से मानवीय सौंदर्य का चित्रण किया है।

वे प्रगतिवाद दौर के भी कवि रहे हैं और उस दौर में उन्होंने ग्रामीण दृष्टि से मानवीय सौंदर्य का यथार्थवादी चित्र भी किया है। इस तरह उन्होंने मानवीय सौंदर्य के हर पक्ष को उजागर किया है। प्रकृति के प्रति प्रेम उनके काव्य की विशेषता रही है, और उन्होने अपने काव्यों में प्रकृति का बेहद भाव-पूर्ण चित्रण किया है। पंत जी की भाषा मुख्यतः संस्कृतनिष्ठ हिंदी रही है और उनके शब्दों का चयन उत्कृष्ट रहा है। उन्होंने फारसी तथा ब्रज भाषा के शब्दों को भी उपयोग में किया है।

Answered by shailajavyas
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Answer:

पंत जी की कीर्ति का आधार स्तंभ काव्य है - " चिदंबरा " । यह,वह कविता संग्रह है जिसके लिए सुमित्रानंदन पंत जी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | यह काव्य संग्रह उनकी काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायिका है जिसमें युगवाणी से लेकर अतिमा तक की रचनाओं का संग्रह है | इस संग्रह के विषय में उन्होंने स्वयं लिखा है  -

                                                     "चिदंबरा के पृथु आकृति में मेरी भौतिक, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित कृतियों को एक स्थान पर देखकर पाठको को उसके भीतर व्याप्त एकता के सूत्रों को समझने में अधिक सहायता मिल सकेगी | इसमें मैंने अपनी सीमाओं के भीतर अपने युग के बहिरंतर के जीवन और चैतन्य को नवीन मानवता की कल्पना से मंडित कर वाणी देने का प्रयत्न किया है | मेरी दृष्टि में युगवाणी से लेकर वाणी तक मेरी काव्य -चेतना का एक ही संचरण है जिसके भीतर बौद्धिक और आध्यात्मिक चरणों की सार्थकता, द्विपद मानव की प्रकृति के लिए सदैव ही अनिवार्य रूप से रहेगी | (पाठक देखेंगे कि) इन रचनाओं में मैंने भौतिकआध्यात्मिक दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्व को लेकर, जड़ -चेतन संबंधी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रिय सामंजस्य के धरातल पर, नवीन लोकजीवन के रूप में ,भरे पूरे मनुष्यत्व अथवा  मानवता का निर्माण करने का प्रयत्न किया है जो इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता है |" - सुमित्रानंदन पन्त

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