Hindi, asked by dipakpotekar22, 3 months ago

पिता के रहते संतान को कीसिभी तरह का अभाव नही होता निबंध लिखो​

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Answered by InnocentWizard
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पिता’ शब्द् संतान के लिए सुरक्षा-कवच है। पिता एक छत है, जिसके आश्रय में संतान विपत्ति के झंझावातों से स्वयं को सुरक्षित पाती है। पिता संतान के जन्म का कारण तो है ही, साथ ही उसके पालन-पोषण और संरक्षण का भी पर्याय है। पिता आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति की गारंटी है। पिता शिशु के लिए उल्लास है; किशोर और तरुण के लिए सर्वोत्तम प्रेरक एवं पथ-प्रदर्शक है तथा वयस्कों-प्रौढ़ों के लिए अनन्त आशीर्वाद है, जिस की उपस्थिति संतान को न केवल अदृश्य संकटों से बचाती है अपितु एक अपूर्व सुरक्षा-बोध भी प्रदान करती है। वृद्ध-रुग्ण शय्या-स्थ पिता के महाप्रस्थान के अनंतर ही सहृदय-संवेदनशील संतान उनकी सत्ता-महत्ता का अभिज्ञान कर पाती है। सौभाग्यशाली हैं वे, जिन्होंने पिता की कृपा-धारा का अमृत पान किया है और धन्य है उनका जीवन जो पिता की सेवा एवं आज्ञा-पालन में सफल रहे हैं। मेरे अनुभव में पिता देह मात्र नहीं हैं; वह प्रेरणा हैं, भाव हैं। जीवन की तपती-धूप में उनकी स्मृति शीतल-मंद बयार का आनंद देती है। संतान चाहे कुछ भी कर ले, वह पितृ-ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकती; केवल पिता की प्रसन्नता का कारण बनकर अपना जीवन सफल कर सकती है।

भारतीय वाङ्ग्मय में ‘शिव’ को पिता कहा गया है। लोक में पिता ही शिव है। वह संतान के सुख और कल्याण के लिए हर संभव प्रयत्न करता है; अपने प्राण देकर भी संतान की रक्षा के निमित्त सतत सन्नद्ध रहता है। कथा है कि मुगल सम्राट बाबर ने ईश्वर से अपने व्याधिग्रस्त-मरणासन्न पुत्र हुमायूँ की जीवन-रक्षा के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने की प्रार्थना की थी। ईश्वर ने बाबर की प्रार्थना स्वीकार की। मृत्युशय्या पर पड़ा हुमायूँ स्वस्थ हो गया और स्वस्थ बाबर अल्प समय में ही रूग्ण होकर चल बसा। पुत्र के लिए ऐसी विधि पितृ-हृदय ही कर सकता है। इसलिए वह वन्द्य है; पूज्य है।

धर्मशास्त्र-साहित्य और लोक-जीवन में समुचित संगति के कारण भारतीय समाज में पितृ-संतान संबंध सदैव मधुर रहे। कभी भी और कहीं भी ‘जनरेशन गैप’ जैसी कल्पित और कटु धारणाओं ने पारिवारिक-जीवन को विषाक्त नहीं किया। पितृ-पद स्नेह और आशीष का पर्याय रहा तो संतान आज्ञाकारिता तथा सेवा-भाव की साधना रही। संवेदना-समृद्ध पारिवारिक-जीवन में पद-मर्यादाएँ स्नेह और आदर से इस प्रकार अनुशासित रहीं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता अथवा एकाकी-निर्णय का विचार भी अस्तित्व में नहीं आया। ‘दशरथ’ के रूप में पिता का आदर्श और ‘राम’, ‘श्रवणकुमार’, ‘नचिकेता’, ‘भीष्म’ आदि रूपों में आदर्श-पुत्रों की छवि समाज में सदा अनुकरणीय रही। संबंधों के मधुर-सूत्रों में गुंथा परिवार चिरकाल से संयुक्त परिवार की परंपरा छाया में सुख-शांतिमय जीवन व्यतीत करता रहा किंतु उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में तथाकथित आधुनिकता के व्यामोह में वैयक्तिक स्वतंत्रता के नाम पर जब संयुक्त-परिवार-प्रणाली की जगह एकल परिवारों ने ली तब पिता-संतान-संबंधों में ऐसी खटास बढ़ी कि स्नेह का क्षीर-सागर फट गया।

संतान के प्रति मोह-ममता के कारण पिता की वात्सल्य-धारा तो सतत प्रवाहित होती रही किंतु संतान ने आज्ञा-पालन और सेवा के सनातन-कर्तव्य से प्रायः मुख मोड़ लिया। बूढ़े-असहाय पिता की संपत्ति पर अधिकार कर उन्हें वृद्धाश्रमों में भेजा जाने लगा। सेवाओं से निवृत्त वृद्धों की भविष्य-निधि-राशि, पेंशन आदि पर तो संतान ने अपना अधिकार स्वीकार किया किंतु उनकी देखभाल, दवाई आदि पर होने वाले व्यय का वहन अस्वीकार कर दिया। ‘बागवान’ जैसी फिल्मों और असंख्य साहित्यिक-कृतियों में संतान की कृतघ्नता के अगणित उदाहरण मिलते हैं, जिनकी सत्यता आस-पड़ोस में घटित होने वाली अलिखित दुर्घटनाओं से नित्य प्रमाणित होती है। अतः जीवन में पिता के महत्व को समझने की, समझाने की आवश्यकता है।

यह कटु सत्य है कि ब्रिटिश शासन ने निजी-स्वार्थों की पूर्ति के लिए हमारी मान्यताओं, जीवन-रीतियों और नीतियों को निरंतर विकृत किया। शिक्षा, भोजन, वेष आदि नितांत निजी क्षेत्रों में सेंध लगाकर उन्होंने हमारी जीवनचर्या इस प्रकार बदली कि आज मांसाहार, मद्यपान और व्यभिचार तथाकथित ऊंची सोसाइटी के अलंकरण बन गए। पारिवारिक बुजुर्गों के निर्देश नई पीढ़ी सिरे से निरस्त करने लगी और बढ़ती टकराहट को जनरेशन गैप का नाम देकर प्रोत्साहित किया गया। परिणामतः आज ऐसे परिवारों की संख्या विरल है, जिनमें पिता का आदर हो; उनका वर्चस्व हो जबकि परिवारों और वृद्धाश्रमों में उपेक्षित एवं अभिशप्त जीवन व्यतीत करते पिताओं की अनकही-व्यथा पग-पग पर बिखरी पड़ी है। व्यवस्था ने वयस्कता के साथ युवाओं को यह सोच दी है कि अपने जीवन के निर्णय लेने का उन्हें पूर्ण अधिकार है और वे अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हैं। पिता उनकी अविवेकपूर्ण और अनुभव-शून्य त्रुटियों को रोकने के भी अधिकारी नहीं हैं। इस अविचारित सोच ने पारिवारिक स्नेह-सूत्रों के बंधन शिथिल किए हैं और परिवार के मुखिया पिता की गरिमा आहत की है।

Explanation:

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Answered by itztalentedprincess
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उत्तर:-

पिता अपनी संतान के लिए रक्षा कवच बन कर उनके साथ रहते हैं हमेशा उनको एक खरोच भी नहीं आने देते हैं वह धूप में अपनी संतान के लिए काम करते हैं अपनी संतान को अच्छे से सुख में खाना देने के लिए अचूक में रखने के लिए धूप में तड़पते हैं धूप में काम करते हैं और हम लोग को जरा से भी खरोच आ जाती है तो वह दौर के चले आते हैं सुरक्षा कवच बनके जब तक पिता है इस दुनिया में तब तक किसी संतान को दुख सहने की जरूरत नहीं पड़ती है I पिता अपनी संतान के लिए अपनी जान भी दे देंगे और कोई भी पिता यह कर सकते हैं कोई भी पिता अपनी संतान के लिए जान दे देंगे I पिता ही संतान के जन्म का कारण होते हैं I और हमें अपने पिता का सम्मान करना चाहिए और बहुत लोग करते हुए सम्मान लेकिन कुछ दोस्त लोग अपने माता पिता को कुछ महत्व नहीं देते उनका कोई सम्मान नहीं करते और ऐसे लोगों को हमेशा कोई ना कोई दुख मिलता है और जो लोग अपने माता-पिता के सम्मान करते हैं उन्हें दुनिया की हर खुशी मिलती है I

कुछ कविता पिता पर:-

  • मेरे प्यारे प्यारे
  • जाते जाते वो अपने जाने का गम दे गये…
  • सब बहारें ले गये रोने का मौसम दे गये…

  • ढूंढती है निंगाह पर अब वो कही नहीं…
  • अपने होने का वो मुझे कैसा भ्रम दे गये…

  • मुझे मेरे पापा की सूरत याद आती है…
  • वो तो ना रहे अपनी यादों का सितम दे गये…

  • एक अजीब सा सन्नाटा है आज कल मेरे घर में…
  • घर की दरो दिवार को उदासी पेहाम दे गये…

  • बदल गयी है अब तासीर, तासीरी जिन्दगी की…
  • तुम क्या गये आंखो में मन्जरे मातम दे गये…

भारतीय लोक में भगवान शिव जी को भी पिता कहा गया है और भगवान शिव पूरे संसार के पिता है पूरे संसार में जितने भी व्यक्ति हैं सब के पिता है वह, हमारे माता पिता के भी पिता है महादेव I वह अपने सभी संतान को हमेशा सुखी रखते हैं और अगर उनकी संतान गलत राह पर जा रहे हैं तूने सही राह दिखाना उनका कर्तव्य है और वह सब की पिता है हमारे दादा दादी, नाना नानी जितने भी संसार व्यक्ति सभी के पिता है महादेव I

हमारे पिता और पूरे संसार के पिता महादेव दोनों एक ही है दोनों अलग नहीं है लेकिन दोनों ही पिता है दोनों एक दूसरे का दर्द समझ सकते हैं और दोनों एक ही कार्य करते हैं अपनी संतान को सुख देना और उन्हें गलत राहत से दूर ले जाना I

आप अपने माता-पिता का सम्मान करें और सुख पाई है इसलिए हमें अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए I

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