पिता ने बंशीधर को क्या सीख दी उौर कयो,
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पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वे धन के सहारे को चट्टान समझते थे, क्योंकि उनका मानना था कि जब तक धन हो तब तक कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, किंतु जब गैर-कानूनी ढंग से नमक की बोरियाँ ले जाते हुए उन्हें नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया और उन्होंने उसे धन का लालच देकर उनसे पीछा छुड़ाना चाहा, किंतु वंशीधर ने धन स्वीकार करने से मना कर दिया, तब पंडित अलोपीदन स्तंभित रह गए, क्योंकि अपने जीवन में उन्होंने पहली बार ऐसा मनुष्य देखा था जिसे धन का लालच न हो और जो धन से ज्यादा अपने धर्म का पालन करता हो। जो धन को देखकर डगमगाए न और जिसे धन अपने कर्तव्य-पथ से भटका नहीं सकता।
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