पिता और पुत्र बीच संवाद
४०-५० शब्दो में
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पिताजी: आजकल परीक्षा को योग्यता जांचने का तरीका समझा जाता है। अंकों को व्यक्ति की बुद्धिमता का मापदंड माना जाने लगा है।
पुत्र: जी हाँ, परीक्षा में उत्तीर्ण होना और अच्छे अंक पाना व्यक्ति की सफलता का सूचक है। इसलिए जो विद्यार्थी पुस्तक पढ़कर उत्तीर्ण हो जाते हैं उनको कक्षा में श्रेष्ठ माना जाता है।
पिताजी: मैं समझता हूँ, इसीलिए परीक्षा विद्यार्थियों के लिए भय का कारण बन गयी है। जिसके कारण अनेक विद्यार्थी परीक्षा में इतने अच्छे अंक नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं।
पुत्र: इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि जिन विद्यार्थियों को कम अंक मिलते हैं वे योग्य नहीं हैं।
पिताजी: यह सत्य है, शिक्षा केवल पुस्तकों के ज्ञान तक सीमित नहीं है। प्रतिदिन के जीवन के लिए सामान्य ज्ञान आवश्यक है।
पुत्र: योग्यता मापने के लिए विद्यार्थी के अन्य गुणों को भी देखना चाहिए। कला में निपुण, खेल कूद में आगे, भाषण देने, नाट्य कला, गायन आदि में कुशल विद्यार्थियों को भी अधिक योग्य मानना चाहिए।
पिताजी: इसलिए सिर्फ पूर्ण अंक प्राप्त करना योग्यता का सूचक नहीं है। उसके साथ कार्यकुशलता भी होनी चाहिए।
पुत्र: जी हाँ, परीक्षा में उत्तीर्ण होना और अच्छे अंक पाना व्यक्ति की सफलता का सूचक है। इसलिए जो विद्यार्थी पुस्तक पढ़कर उत्तीर्ण हो जाते हैं उनको कक्षा में श्रेष्ठ माना जाता है।
पिताजी: मैं समझता हूँ, इसीलिए परीक्षा विद्यार्थियों के लिए भय का कारण बन गयी है। जिसके कारण अनेक विद्यार्थी परीक्षा में इतने अच्छे अंक नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं।
पुत्र: इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि जिन विद्यार्थियों को कम अंक मिलते हैं वे योग्य नहीं हैं।
पिताजी: यह सत्य है, शिक्षा केवल पुस्तकों के ज्ञान तक सीमित नहीं है। प्रतिदिन के जीवन के लिए सामान्य ज्ञान आवश्यक है।
पुत्र: योग्यता मापने के लिए विद्यार्थी के अन्य गुणों को भी देखना चाहिए। कला में निपुण, खेल कूद में आगे, भाषण देने, नाट्य कला, गायन आदि में कुशल विद्यार्थियों को भी अधिक योग्य मानना चाहिए।
पिताजी: इसलिए सिर्फ पूर्ण अंक प्राप्त करना योग्यता का सूचक नहीं है। उसके साथ कार्यकुशलता भी होनी चाहिए।
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