पितृसत्ता को बनाये रखने वाले ससथागत और धारणात्मक तत्वों की विवेचना कीजिये
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हमारे समाज में कई तरह की असमानताएँ हैं। स्त्री और पुरुष के बीच की असमानता उन में से एक है। आम तौर पर पितृसत्ता का प्रयोग इसी असमानता को व्यक्त करने के लिए होता है। इस रूप में यह हमारे सहज बोध में इस कदर रचा-बसा है कि इसे परिभाषित करना फिजूल लग सकता है। लेकिन इसे परिभाषित करने की कोशिश जारी है। नारीवादियों के बीच इसकी परिभाषा को लेकर मतभेद भी रहा है। कुछ नारीवादी तो ऐसी हैं जो इसके प्रयोग को ही अनुपयोगी मानती हैं। इसका एक कारण खुद पितृसत्ता शब्द का पहले जिस अर्थ में प्रयोग होता आ रहा था, वह है। दूसरा कारण वह पृष्ठभूमि है जिसमें स्त्री की अधीन स्थिति के लिए इस शब्द का प्रयोग होना शुरू हुआ था। आगे इन कारणों पर विचार किया गया है।
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