पितृ यग किस प्रकार किया जाता है।
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पितृ यज्ञ
सत्य, आस्था और निर्मल मन से किये गये कर्म को श्राद्ध कहते है एंव जिस कर्म से माता-पिता और गुरू की आत्मा तृप्त हेाती है, उसे तर्पण कहते है। वेदों के अनुसार श्राद्ध और तर्पण हमारे माता-पिता व गुरू के प्रति सम्मान का भाव है। जिससे हमारे आने वाली पीढ़ी अपने माता-पिता का सम्मान व आदर करें। यह यज्ञ सम्पन्न होता है, सन्तानोत्पत्ति से। यह यज्ञ करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
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सत्या,आसथा क़ुर सचे मन से की जती हे
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